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सॉफ्ट टॉय आपके बच्चों को मुश्किल में डाल सकते हैं, जानें कैसे
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सॉफ्ट टॉय आपके बच्चों को मुश्किल में डाल सकते हैं, जानें कैसे

आपके बच्चे हर समय उनके साथ रंगीन सॉफ्ट टॉयज रखना या उनके साथ खेलना पसंद कर सकते हैं, लेकिन डस्ट माइट भी ऐसा ही पसंद करते हैं।
आपके बच्चे हर समय उनके साथ रंगीन सॉफ्ट टॉयज रखना या उनके साथ खेलना पसंद कर सकते हैं, लेकिन डस्ट माइट भी ऐसा ही पसंद करते हैं।
अनंत सुब्रमण्यम K द्वारा ली गयी फोटो

एक माँ के रूप में, स्तुति अग्रवाल हमेशा अपने बड़े बेटे की डस्ट माइट एलर्जी को लेकर चिंतित रहती हैं। उसने जो सावधानियां बरती हैं, उनमें से एक है अपने घर के सॉफ्ट टॉयज को अपने बच्चों की पहुंच से दूर रखना। रंगीन सॉफ्ट टॉयज जो जंगली जानवरों और पालतू जानवरों के मीनीएचर्स हैं, न केवल बच्चों को बल्कि डस्ट माइटों को भी आकर्षित करते हैं। 

मुंबई की एक ब्लॉगर अग्रवाल का कहना है कि उनके साढ़े चार साल के बेटे को डस्ट माइट एलर्जी और इससे जुड़े सामान्य लक्षणों जैसे छींकना और नाक बहने का सामना करना पड़ रहा है। चार साल पहले, जब उनका परिवार हांगकांग में रहता था, तो उनके बेटे को बार-बार चकत्ते हो जाते थे, और माता-पिता यह पता नहीं लगा पाते थे कि वास्तव में क्या समस्या थी। “हांगकांग में बार-बार डॉक्टरों को दिखाना आसान नहीं था। हम एक डॉक्टर से मिले जिन्होंने इसे रैशेज कहकर खारिज कर दिया, हालांकि हांगकांग में डस्ट माइट एलर्जी बहुत सामान्य थी। वह (बेटा) तब सिर्फ दस महीने का था। जब हम मुंबई आए, तो छींक और नाक बहने की समस्या और बढ़ गई थी। डॉक्टरों ने कहा कि यह डस्ट माइट एलर्जी थी।”  

अग्रवाल ने बताया कि जिन डॉक्टरों से उन्होंने सलाह ली, उन्होंने सॉफ्ट टॉयज को स्पष्ट रुप से ‘ना’ कहा। उसके इस्तेमाल को मना किया। वर्षों से उनके पति ने उन्हें जो सॉफ्ट टॉयज गिफ्ट में दिए थे, उन्होंने अब उनको प्लास्टिक में लपेट कर दूर रख दिया है। “सॉफ्ट टॉयज डस्ट माइट के लिए एक बड़ा आकर्षण हैं। फ्लफी खिलौने जो इतने आकर्षक लगते हैं सबसे खराब होते हैं। हमने अपने बच्चों को लकड़ी के खिलौने दिए हैं जिन्हें हम अक्सर धो सकते हैं।”  

सॉफ्ट टॉयज को कैसे धोएं 

डॉ अनुपमा सेन, वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ, अपोलो क्लिनिक, पुणे कहती हैं, “कई बार, हम उन सॉफ्ट टॉयज को नज़रअंदाज़ कर देते हैं जो हर समय बच्चे के करीब होते हैं। बच्चों के बीच अक्सर देखी जाने वाली एलर्जी के साथ, हम पाते हैं कि सॉफ्ट टॉयज में घर की धूल के बहुत सारे कण होते हैं।” वह कहती हैं कि डस्ट माइट एलर्जी पैदा कर सकते हैं जो ठंड या आंखों के बहने के रूप में दिखाई दे सकते हैं। 

वह यह भी बताती हैं कि एटोपिक डर्मेटाइटिस नामक तीव्र शुष्क त्वचा वाले बच्चे डस्ट माइट एलर्जी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। अगर वे सॉफ्ट टॉयज की डस्ट माइट के संपर्क में आते हैं तो स्थिति और खराब हो सकती है। 

डॉ सेन कहते हैं, “अगर एलर्जी जारी रहती है, तो यह आगे चलकर अस्थमा का कारण बन सकती है। अस्थमा एलर्जी के कारण होता है क्योंकि बच्चे को वातावरण से एलर्जी होती है। डस्ट माइट बच्चों की गाड़ी (खिलौना), पालने, बिस्तर या गद्दे में भी हो सकते हैं।” कई सर्वे ने बिना किसी संदेह के साबित किया है कि सॉफ्ट टॉय बच्चों में एलर्जी का स्रोत हो सकते हैं। “हमें बच्चों को सॉफ्ट टॉय देने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। हमें सभी खिलौनों को धोना चाहिए, साफ करना चाहिए और सुखाना चाहिए।”  

सॉफ्ट टॉयज को कैसे साफ करें 

डॉ. सेन के अनुसार, ट्रौपिकल कलाइमेट में घर पर सॉफ्ट टॉयज को साफ करने का सबसे अच्छा तरीका है कि उन्हें लिक्विड डिटर्जेंट के साथ एंटीसेप्टिक से धोएं और धूप में सुखाएं। वह बताती हैं कि नमी और गर्मी के कारण ट्रौपिकल कलाइमेट में डस्ट माइट पनपते हैं। “बच्चों को देने से पहले सभी खिलौने जैसे हार्ड टॉय और पुल-अलॉन्ग टॉय को अच्छी तरह से धोना और साफ करना चाहिए। साथ ही आसपास के बाकी हिस्सों को भी वैक्यूम करके साफ रखना होगा। गद्दे को वैक्यूम किया जा सकता है और धूप में सुखाया जा सकता है। कीटाणुरहित करने के लिए धूप में सुखाना सबसे अच्छा तरीका है। ऐसा नहीं है कि सभी सॉफ्ट टॉय एलर्जी को बढ़ा देते हैं। जिन टॉयज के सतह पर डस्ट माइट एकत्र हो जाते हैं, वे एलर्जी में योगदान करते हैं” वह कहती हैं कि डस्ट माइट एलर्जी दो साल से कम उम्र के बच्चों में बड़े पैमाने पर देखी जाती है, जब वे इधर-उधर नहीं जा रहे होते हैं। वह कहती हैं “जब वे स्कूल जाना शुरू करते हैं, तो वे खुद को अन्य गतिविधियों में व्यस्त रखते हैं और दूसरे बच्चों के साथ खेलना शुरू करते हैं। इस प्रकार, सॉफ्ट टॉयज के साथ उनका संपर्क धीरे-धीरे कम हो जाता है।” 

डॉ. सेन का यह भी कहना है कि माता-पिता को बच्चों को खिलौने देते समय सावधानी बरतनी चाहिए और उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि 12 महीने से कम उम्र के बच्चों को सोते समय अपने पास खिलौने नहीं रखने चाहिए। “अगर खिलौना सांस लेने के रास्ते में आ रहा है तो उनकी नाक बंद हो सकती है।” 

बेंगलुरु की रहने वाली दिव्या सौम्यजी का कहना है कि उनकी नौ साल की बेटी के एलर्जी टेस्ट में डस्ट माइट्स को इसका कारण पाया गया। “मेरी बेटी की आँखें अक्सर लाल रहती थी। आंखों में सूजन आ जाती है और पानी जैसा डिस्चार्ज होने लगता है। हमने पहले सोचा कि यह आंखों के साथ एक समस्या हो सकती है और नेत्र रोग विशेषज्ञों से परामर्श किया। हमें बताया गया कि उसे एलर्जी है। फिर आई ड्रॉप्स ने लक्षणों से राहत दिलाने में उसकी मदद की। बाद में हम जिस एलर्जिक विशेषज्ञ से मिले उन्होंने टेस्ट किया और पाया कि यह डस्ट माइट एलर्जी थी,” 

जब उनकी बेटी अपने खिलौनों से खेलती है तो सौम्यजी हमेशा सतर्क रहती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके सभी खिलौनों को अच्छी तरह से धोया जाए और साफ रखा जाए। वह कहती हैं, ‘शुक्र है कि मेरी बेटी सॉफ्ट टॉयज की शौकीन नहीं है, लेकिन जब भी वह उनके साथ खेलती है, तो हम बेहद सावधानी बरतते हैं।’ इसके अलावा, धूल से कम से कम संपर्क को सुनिश्चित करने के लिए घर को हर दिन साफ किया जाता है। 

दिव्या की बेटी का उपचार कर रहे कंगारूकेयर अस्पताल, बेंगलुरु के बाल रोग विशेषज्ञ और एलर्जी विशेषज्ञ डॉ सौम्या अरुदी नागराजन का कहना है कि लड़की को पोलेन और डस्ट माइटों से एलर्जी है। “डस्ट माइट सूक्ष्म जीव हैं जो मानव मृत त्वचा पर फ़ीड करते हैं। डॉ नागराजन कहते हैं,वे तकिए, गद्दे और सोफा कुशन जैसे आरामदायक वातावरण में पनपते हैं। वास्तविक धूल की अनुपस्थिति में भी, धूल के कीटाणु पनपते हैं। बहुत से लोग धूल को डस्ट माइट समझने की गलती करते हैं,” वह कहती हैं कि डस्ट माइट के प्रोटीन मल एलर्जी का कारण बनता है। 

पीडियाट्रिक एलर्जी इम्यूनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित साल 2011 के एक शोध पत्र में कहा गया है कि सॉफ्ट टॉयज हाउस डस्ट माइट्स (HDM) और HDM एलर्जेंस का एक प्रमुख स्रोत हैं और सॉफ्ट टॉयज के साथ सोना HDM सेंसिटाइज़ेशन के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम का फैक्टर है। शोधकर्ताओं ने सॉफ्ट टॉयज से HDM को खत्म करने के लिए तीन तकनीकों का अध्ययन किया इसमें शामिल हैं फ्रीजिंग, हॉट टंबल ड्राईंग और यूकेलिप्टिस के तेल से साफ करना। रिसर्च कहती है कि ‘छत्तीस खिलौनो को एक-एक करके रात भर जमाने से पहले और बाद में हीट एस्केप विधि द्वारा लाइव HDM किया, एक घंटे के लिए हॉट टम्बल ड्राइंग की तथा 0.2 प्रतिशत से 0.4 प्रतिशत यूकेलिप्टिस के तेल में धोया। फ्रीजिंग, हॉट टंबल ड्राईंग और यूकेलिप्टिस के तेल से धोने के परिणामस्वरूप लाइव HDM में क्रमशः 95.1 प्रतिशत, 89.1 प्रतिशत और 95.1 प्रतिशत की औसत की कमी आई।’  

क्या डस्ट माइट तकिए के कवर और AC फिल्टर में छिपे हो सकते हैं? 

डॉ नागराजन कहते हैं कि डस्ट माइट्स पांच सितारा होटलों सहित कहीं भी पाए जा सकते हैं। “कुछ मामलों में, हमने छुट्टियों से लौटते ही बच्चों में एलर्जी देखी है। टिपिकल सिमप्ट्मस में छींक आना और आंखों से पानी आना शामिल है। होटलों में तकिए के कवर को बदला और धोया जा सकता है, लेकिन अंदर वे (डस्ट माइट्स) अभी भी रहेंगे क्योंकि तकिए नहीं बदले जाते हैं।” 

डॉ नागराजन कहते हैं, “AC फिल्टर, विशेष रूप से कारों में उपयोग किए जाने वाले AC फिल्टरों में भी डस्ट माइट्स होते हैं और उन्हें समय-समय पर साफ किया जाना चाहिए।” वह आगे कहती हैं- “एयर कंडीशनर में ठंडा तापमान डस्ट माइट्स के विकास को बढ़ावा देता है।” 

निदान

डस्ट माइट एलर्जी का कारण अलग-अलग हो सकता है और एलर्जी की पहचान हमेशा एलिमिनेशन की एक प्रक्रिया है। डॉ. सेन कहती हैं, “एलिमिनेशन की प्रक्रिया में, हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि बच्चे ने क्या खाया या पिया है, बच्चे ने किस सतह को छुआ है और उसने कौन से कपड़े पहने हैं।” संभावित एलर्जी और ट्रिगर का पता लगाने के लिए यह पता लगाएं की बच्चों ने क्या खाया है और वो किसके संपर्क में हैं। 

स्किन प्रिक टेस्ट भी किए जाते हैं। इस तरह के टेस्ट में एलर्जी से पीड़ित व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की एलर्जी या एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थों के संपर्क में लाया जाता है और एलर्जी प्रतिक्रियाओं के रूप में दिखाई देने वाले तत्काल लक्षणों को चिकित्सकीय देखरेख में देखा जाता है। 

डॉ नागराजन कहते हैं- उपचार एंटीहिस्टामाइन और एंटी-एलर्जिक दवाओं के रूप में होता है। “स्किन प्रिक टेस्ट तभी किया जाता है जब एंटीहिस्टामाइन के साथ उपचार की पहली पंक्ति से लाभ नहीं मिलता है। इसके अलावा, अगर एलर्जी मध्यम से गंभीर है, तो हम स्किन प्रिक टेस्ट करवाते हैं।” 

एक ‘ताकतवर’ फोकस-स्टीलर 

जिन माता-पिता के बच्चे एलर्जी से पीड़ित हैं, वे बताते हैं कि बार-बार होने वाली एलर्जी से बच्चे का ध्यान प्रभावित होता है। 

अग्रवाल का कहना है कि उनके बेटे की डस्ट माइट एलर्जी मौसम में बदलाव के साथ बढ़ती है और यह बेटे की कंसेनट्रेशन को प्रभावित करती है। “हमने कई डॉक्टरों से परामर्श किया है। नेज़ल स्प्रे उसकी मदद करते हैं। लेकिन हमें नहीं पता कि इसे हमेशा के लिए जारी रखने की जरूरत है या नहीं। हम प्राकृतिक चिकित्सा में साल्ट थेरेपी जैसे नए उपचारों की भी खोज कर रहे हैं। लेकिन धूल से बचना सबसे बड़ी चुनौती है।’ वह कहते हैं कि बेटे को एलर्जी होने के बावजूद वह लड़के को मिट्टी में खेलने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। अग्रवाल कहते हैं, ”इसी तरह वह इम्युनिटी हासिल करेगा।” 

 

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