हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर शब्द सुनते ही ज्यादातर लोगों में तेज़-तेज़ धड़कते दिल या दिमाग (मस्तिष्क) की छवियाँ सामने आती हैं। वे शायद ही कभी कल्पना करते हैं कि हाई ब्लड प्रेशर और किडनी की बीमारी का उनके किडनी के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
तकनीकी रूप से, यह काफी आसान है क्योंकि किडनी एक ब्लड ट्रीटमेंट प्लांट हैं जो हमारे शरीर में बहने वाले रक्त को छानने के लिए जिम्मेदार होता हैं। हालांकि, रिसर्च ने हाइपरटेंशन और किडनी की स्थिति के बीच एक अनहेल्दी रिलेशनशिप का खुलासा किया है, जो अनियंत्रित रहने पर गंभीर स्वास्थ्य कॉम्पलिकेशन का कारण बन सकता है।
नेफ्रोलॉजिस्ट ने हैप्पीएस्ट हेल्थ को बताया कि अनियंत्रित और लंबे समय तक हाई ब्लड प्रेशर के कारण किडनी को गंभीर नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि किडनी की गंभीर कॉम्पलिकेशन के परिणामस्वरूप ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है, जिसे अक्सर सेकेंडरी ब्लड प्रेशर कहा जाता है क्योंकि यह अलग-अलग मौजूदा चिकित्सा स्थितियों (किडनी, हृदय या डायबिटीज संबंधी जटिलताओं सहित) से शुरू होता है।
हाई ब्लड प्रेशर और किडनी की समस्याएं
डॉ. अतुल इंगले, कंसल्टेंट नेफ्रोलॉजिस्ट और ट्रांसप्लांट फिजिशियन, डायरेक्टर, नेफ्रोलॉजी विभाग, फोर्टिस हीरानंदानी अस्पताल, वाशी, नवी मुंबई के अनुसार, ज्यादातर लोगों की यह धारणा है कि दिल का दौरा और ब्रेन स्ट्रोक प्राइमरी ब्लड प्रेशर से संबंधित हानिकर स्थितियां हैं और वे इस बात को नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि BP (ब्लड प्रेशर) हमारे बाकी अंगों को कैसे प्रभावित कर सकता है।
डॉ इंगले कहते हैं, “हमें याद रखना चाहिए कि ब्लड हमारे वास्कूलर सिस्टम में प्रवाहित होता है और अन्य अंगों के अलावा यह हमारे किडनी को भी बड़े पैमाने पर प्रभावित करता है।”
बैंगलोर की नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ गरिमा अग्रवाल कहती हैं कि लगभग 30 से 40 प्रतिशत उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) वाले लोगों में आमतौर पर किडनी के अंदर की स्थिति होती है। दूसरी ओर, किडनी की बीमारी वाले लगभग 90 प्रतिशत लोगों को सेकेंडरी ब्लड प्रेशर हो जाता है। डॉ. अग्रवाल आगे कहती हैं, ”इसी तरह ये दोनों आपस में जुड़े हुए हैं।
वह ऐसे कई रोगियों से मिलती हैं, जो जागरूकता की कमी के कारण (कई वर्षों तक हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित होने के बावजूद) किडनी के खराब होने का पता बाद में लगा पाते हैं। वह कहती हैं- “दुर्भाग्य से, जब चेक-अप की बात आती है, तो हाई BP वाले रोगियों के साथ भी किडनी की सबसे अधिक अनदेखी की जाती है।” “ज्यादातर समय किडनी की बीमारियों या किडनी संबंधी हाई ब्लड प्रेशर जैसी स्थितियों का पता तब चलता है जब किडनी पहले से ही इर-रिवर्सेबली डैमेज हो चुके होते हैं।”
मेरे दोस्त, खून में ही इसका जवाब बह रहा है
हमारे शरीर की वास्कूलर मोटिलीटी विशेष रूप से रक्त प्रवाह, लगातार चल रहे चिकित्सा अनुसंधान के आधार पर डिफाइन और रि-डिफाइन किया जा रहा है। सबसे सरल एक्सप्लेनशन जो हाइपरटेंशन के कारणों के लिए पेश किया जा सकता है, वह हमारे शरीर के माध्यम से प्रवाहित होने वाली आर्टरीज़ की दीवारों पर रक्त द्वारा लगाया गया बल होगा। मौजूदा परिस्थितियां भी यहां एक प्रमुख भूमिका निभाएंगी – जैसे अत्यधिक लिपिड निर्माण जो ब्लड के सुचारू प्रवाह को और बाधित कर सकती हैं। इससे अंततः आर्टरीज़ सख्त हो सकती हैं और जख्मी हो सकती हैं, जिससे रक्त का प्रवाह कम हो सकता है और बाधित हो सकता है जिससे हमारे शरीर में रक्त के प्रवाह को बनाए रखने के लिए हृदय पर अधिक दबाव पड़ता है। ये सभी फैक्टर ब्लड प्रेशर को और बढ़ा देते हैं, जो तब और भी बदतर हो जाता है जब व्यक्ति को कोलेस्ट्रॉल और हाई ब्लड शुगर सहित हृदय संबंधी अन्य समस्याएं होती हैं।
डॉ. अग्रवाल आर्टरिज़ की तुलना रबड़ के पाइप से करती हैं, जिसमें पानी का तेज प्रवाह और दबाव होता है। वह कहती हैं- “एक बिंदु के बाद पानी का बल या उछाल पाइप की दीवार को नुकसान पहुंचाएगा और उसे चकनाचूर कर सकता है।”
डॉ. अग्रवाल कहती हैं- इसी तरह, न केवल किडनी से जुड़ी आर्टरिज़ बल्कि किडनी में उपस्थित कैपीलरी रक्त वाहिकाएं) पर भी दबाव में पड़ता है और वे जख्मी हो जाती हैं। “किडनी का एक बार खराब हो जाने के बाद, उसको पूरी तरह से ठीक करना मुश्किल है क्योंकि वह हिस्सा अब एक डेड टीशू है जिसे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है।”
इसलिए, ब्लड प्रेशर किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है, खराब किडनी ब्लड प्रेशर को और अधिक बढ़ा देते हैं क्योंकि वे अब ब्लड को छानने या तरल पदार्थों को पास करने के अपने कार्य को जारी नहीं रख सकते हैं। “यह लगभग चिकन और अंडे की स्थिति की तरह है,” वह कहती हैं। दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
रिनल हाइपरटेंशन
इसलिए, अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए, तो हाई BP किडनी को नुकसान पहुंचाता है। रिनल हाइपरटेंशन एक ऐसी स्थिति है जो किडनी से उत्पन्न होती है और ब्लड प्रेशर को बहुत अधिक बढ़ा देती है।
डॉ अग्रवाल के अनुसार जब हम किडनी के हाई ब्लड प्रेशर के बारे में बात करते हैं तो इसका मतलब है कि हम किडनी में रक्त ले जाने वाली आर्टरीज़ के संकुचित होने के कारण किडनी और ब्लड प्रेशर का जिक्र कर रहे हैं। इसे रिनल आर्टरी स्टेनोसिस के रूप में भी जाना जाता है, रिनल हाइपरटेंशन के कारण आर्टरी छोटी हो जाती हैं, जो ब्लड को किडनी में जाने से रोकता है। डॉ. अग्रवाल कहती हैं, ”एक तरह से यह किडनी में पानी की कमी कर देता है और उनके ठीक से काम करने में रुकावट पैदा करता है।”
दो समस्याएं हैं जो रिनल आर्टरी स्टेनोसिस का कारण बनती हैं: एथेरोस्क्लेरोसिस या फाइब्रोमस्कुलर डिस्प्लेसिया (FMD) (atherosclerosis or fibromuscular dysplasia (FMD))
डॉ इंगले कहते हैं, “एथेरोस्क्लेरोसिस तब होता है जब पल्लेक का निर्माण होता है। आर्टरी के कॉन्ट्रैकश्न और सख्त होने का कारण बनता है, दूसरी ओर, फाइब्रोमस्कुलर डिसप्लेसिया, एक जेनेटीक कंडीशन है जो शरीर में आर्टरी के कॉन्ट्रैकश्न या वृद्धि का कारण बनती है,”
जर्नल ऑफ क्लिनिकल हाइपरटेंशन में प्रकाशित एक रिसर्च लेख के अनुसार, FMD अज्ञात कारणों से होने वाला वैस्कुलर डिजीज है जो मल्टीपल वैस्कुलर बेड में हो सकता है। किडनी में, यह आमतौर पर किडनी की आर्टरी के मध्य या बाहर के भाग में होता है और यह छोटी सहायक किडनी की आर्टरी में भी पाया जा सकता है। FMD युवा रोगियों और महिलाओं में अधिक सामान्य है।
आपको कब चिंता करने की ज़रूरत है
डॉ अग्रवाल के अनुसार, वैसे तो हाई BP वाले किसी भी व्यक्ति को डायग्नोसिस के समय ही स्क्रीनिंग करा लेनी चाहिए और उसके बाद वार्षिक स्क्रीनिंग करानी चाहिए। अग्रवाल कहते हैं, “हालांकि, किडनी की बीमारी की शुरुआत में अक्सर कोई बड़ा बाहरी लक्षण नहीं होता है।” “इसलिए, कम से कम वार्षिक आधार पर ब्लड प्रेशर और किडनी के कार्य के लिए स्क्रीनिंग के लिए नियमित जांच कराना बहुत महत्वपूर्ण है।”
इसलिए, यदि आपका पहले से नियंत्रित ब्लड प्रेशर फिर से बढ़ना शुरू हो रहा है या दवाओं के बावजूद भी बहुत अधिक है, तो आपको सतर्क हो जाना चाहिए और डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
उपचार से बेहतर है रोकथाम
डॉ. अग्रवाल के अनुसार, हालांकि रिनल हाइपरटेंशन के मामले बहुत कॉमन नहीं हैं या 2 प्रतिशत से कम हैं, लेकिन एक बड़ी समस्या ब्लड प्रेशर है जो किडनी को नुकसान पहुंचाता है। अग्रवाल कहती हैं, ‘दुर्भाग्य से इस समस्या के बारे में बहुत कम जागरूकता है।’ “आमतौर पर, कोई विशेष लक्षण नहीं होते हैं जो यह इंजिकेट करते हैं कि किडनी प्रभावित हैं, यही कारण है कि हाई ब्लड प्रेशर वाले लोगों को नियमित रूप से किडनी और यूरीन टेस्ट करवाना चाहिए, जो सरल और सस्ते भी हैं।” उनका अनुभव है कि विशेष रूप से 30 और उससे कम उम्र के युवा, और 50 उम्र के वृद्ध लोग जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर है, उन्हें प्राथमिकता पर किडनी के काम का टेस्ट करवाना चाहिए।
डॉ इंगले कहते हैं, “अधिकतर रिनल हाइपरटेंशन एक एक्सीडेंटल खोज होती है जब लोग फुल-बॉडी चेक-अप या एग्जेक्युटिव हेल्थ चेक-अप करवाने के लिए जाते हैं।”
द जर्नल ऑफ क्लिनिकल हाइपरटेंशन का कहना है कि FMD युवा महिलाओं में मौजूद होता है (हालांकि कई मामलों में डायग्नोसिस 40 साल की उम्र के बाद तक नहीं हो पाता है), जबकि एथेरोस्क्लेरोटिक रोग आमतौर पर एथेरोस्क्लेरोसिस के ट्रेडिशनल रिस्क फैक्टर वाले पुराने रोगियों में देखा जाता है।
यूरीन में निर्मित क्रिएटिनिन और प्रोटीन की जाँच करने के लिए बस एक साधारण ब्लड टेस्ट की आवश्यकता होती है।
डॉ इंगले का कहना है कि अगर आपका BP लगातार बढ़ रहा है तो ब्लड प्रेशर की दवा बदलना हमेशा इसका जवाब नहीं होता है। वे कहते हैं, ”आपको इस पर सवाल उठाना चाहिए और पहले किडनी की जांच करानी चाहिए।” उनका सुझाव है कि सबसे पहले दवाओं और जीवन शैली में बदलाव के जरिए ब्लड प्रेशर को कम किया जाना चाहिए। वे कहते हैं, “BP को बड़े पैमाने पर नियंत्रित रखने के लिए नमक का सेवन कम करना एक महत्वपूर्ण बिंदु है।”
डॉ अग्रवाल का कहना है कि शुरुआती किडनी रोगों को दवाओं और जीवनशैली में बदलाव के साथ नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन एडवांस स्टेजेस में – जिन्हें एन्ड स्टेजेस के किडनी रोग के रूप में जाना जाता है – रोगियों को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांटेशन (किडनी प्रत्यारोपण) की आवश्यकता होती है।