एटोपी, एलर्जी की समस्या का एक आनुवंशिक कारण है और एटोपी के कारण एटोपिक डर्मेटाइटिस, राइनाइटिस और अस्थमा जैसी एलर्जी की बीमारी होती है।
आमतौर पर अधिकांश लोगों के लिए नुकसानदेह नहीं साबित होने वाले तत्वों के प्रति जब शरीर की इम्यूनिटी की प्रतिक्रिया सामान्य से अधिक बढ़ जाती है, तो उसे एलर्जी कहते हैं। इसी समस्या को एटोपी कहते हैं। एटोपी एक ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है बेतुका, जिसे अमेरिकी एलर्जी एक्सपर्ट आर्थर कोका और रॉबर्ट कुक द्वारा 1923 में एनवायरमेंटल समस्याओं के प्रति असामान्य अतिसंवेदनशीलता की समस्या की चर्चा करते हुए कहा गया।
बेंगलुरु में एलर्जी, अस्थमा और चेस्ट सेंटर के एलर्जी और अस्थमा एक्सपर्ट डॉ. आर नरसिम्हन का कहना है, “एटोपी में किसी व्यक्ति में कुछ एनवायरमेंटल पदार्थों या कुछ फूड्स के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है और उससे क्लिनिकल सिंड्रोम मतलब एलर्जी की समस्या होने लगती है। इन व्यक्तियों की फैमिली में एलर्जी की हिस्ट्री होती है, जिससे वे आनुवंशिक रूप से संवेदनशील हो जाते हैं।”
एटोपी: जीन और एनवायरमेंट का एक-दूसरे से संबंध
पहली बार एटोपी की फैमिली हिस्ट्री की जानकारी जूलियो-क्लाउडियन राजवंश में दर्ज हुई, जहां सम्राट ऑगस्टस (एटोपी पीड़ित वाले व्यक्ति) ब्रोन्कियल अस्थमा, मौसमी राइनाइटिस और एटोपिक एक्जिमा से पीड़ित थे, जबकि उनके पोते क्लॉडियस राइनो कंजंक्टिवाइटिस की समस्या हुई और ऑगस्टस के परपोते ब्रिटानिकस को घोड़े के डैंड्रफ से एलर्जी की समस्या हुई, जो एलर्जी के आनुवंशिक संबंध को दर्शाता है।
डॉ. नरसिम्हन के अनुसार, एलर्जी होना जीन और एनवायरमेंट का एक कॉम्प्लैक्स रिएक्शन है और एटोपिक संबंधी लक्षण होना इस बात की गारंटी नहीं है कि किसी व्यक्ति में एलर्जी की समस्या ज़रूर होगी।
एटोपी और इससे जुड़ी विभिन्न समस्याएं
इंदौर के इंदौर चेस्ट और एलर्जी सेंटर, पल्मोनोलॉजिस्ट और एलर्जिस्ट डॉ. एस ज़ेड जाफरी का कहना है, “एटोपी अस्थमा, एलर्जिक राइनाइटिस (हे फीवर), एटोपिक डर्मेटाइटिस (एक्जिमा), एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस और फूड एलर्जी जैसी कई समस्या के रूप में दिखाई दे सकती है।”
एलर्जिक ब्रोन्कियल अस्थमा और एलर्जिक राइनाइटिस, एटोपी के कारण सामान्य रूप से होने वाली समस्याएं हैं और इसके बाद एटोपिक डर्मेटाइटिस और कंजक्टीवाइटिस जैसी अन्य एलर्जी की समस्याएं होती हैं। किसी व्यक्ति में एक ही समय में या अलग-अलग समय में दो या दो से अधिक एलर्जी की समस्या एक साथ भी मौजूद हो सकती हैं।
डॉ. नरसिम्हन का कहना है, ”एलर्जिक डर्मेटाइटिस, अस्थमा और एलर्जिक राइनाइटिस के एक साथ मौजूद होने को एटोपिक ट्रायड कहते हैं।”
एटोपिक मार्च
एटोपिक मार्च या एलर्जिक मार्च का मतलब समय के साथ एलर्जी की समस्या का बढ़ना है, जो बचपन से शुरू होकर वयस्क अवस्था तक जारी रहता है।
एटोपिक मार्च के बारे में बताते हुए डॉ. जाफ़री का कहना है कि आमतौर पर एटोपी में शुरुआत में एटोपिक एलर्जिक डर्मेटाइटिस की समस्या होती है, जो जन्म के समय और शिशु अवस्था में हो सकती है और इसमें स्किन रूखी, संवेदनशील हो जाती है और स्किन झिरझिरी हो जाती है और बहुत अधिक खुजली होती है।
एलर्जिक डर्मेटाइटिस के बाद अक्सर फूड एलर्जी होती है, जैसे अखरोट से एलर्जी, अंडे से एलर्जी और शेलफिश से एलर्जी। एटोपिक मार्च या एलर्जिक मार्च का मतलब समय के साथ एलर्जी की समस्या का बढ़ना है, जो बचपन से शुरू होकर वयस्क अवस्था तक जारी रहता है।
एटोपिक मार्च के बारे में बताते हुए डॉ. जाफ़री का कहना है कि आमतौर पर एटोपी में शुरुआत में एटोपिक एलर्जिक डर्मेटाइटिस की समस्या होती है, जो जन्म के समय और शिशु अवस्था में हो सकती है और इसमें स्किन रूखी, संवेदनशील हो जाती है और स्किन झिरझिरी हो जाती है और बहुत अधिक खुजली होती है।
एलर्जिक डर्मेटाइटिस के बाद अक्सर फूड एलर्जी होती है, जैसे अखरोट से एलर्जी, अंडे से एलर्जी और शेलफिश से एलर्जी।
डॉ. जाफरी का कहना है, “6 साल की उम्र तक, एटोपिक डर्मेटाइटिस कम हो जाती है और बच्चे में एलर्जिक राइनाइटिस जैसी सांसों से संबंधित एलर्जी की समस्या हो जाती है, जिसके लक्षण छींक के साथ बंद नाक की समस्याएं हैं। ये लक्षण धीरे-धीरे एलर्जिक अस्थमा में बदल सकते हैं।”
संवेदनशीलता कैसे होती है
एलर्जी की समस्या का पहला चरण संवेदनशीलता है। संवेदनशीलता में एटोपी से पीड़ित व्यक्ति पहली बार एलर्जेन पदार्थों के संपर्क में आते हैं। ऐसा नहीं है कि किसी एलर्जेन के साथ पहली बार संपर्क में ही एलर्जिक रिएक्शन होने लगते हैं, लेकिन एटोपिक व्यक्ति की इम्यूनिटी एलर्जेन पदार्थों को पहचान जाती है और फिर जब बाद में दोबारा संपर्क होने पर एलर्जी रिएक्शन के लिए तैयार हो जाती है।
डॉ. नरसिम्हन का कहना है, “जब संवेदनशील व्यक्ति एलर्जेन पदार्थों के संपर्क में आते हैं, तो उनमें हाइपरसेंसिटिविटी रिएक्शन होने लगता है और इससे एलर्जी की कई तरह के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।” हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि सभी संवेदनशील व्यक्तियों में एलर्जी की समस्या हो।
डॉ. नरसिम्हन का कहना है कि कुछ लोगों में ब्लड या स्किन प्रिक्क टेस्ट जैसे एलर्जी से जुड़े टेस्ट कराने पर पॉज़िटिव रिजल्ट हो सकता है। इसका मतलब है कि वे एलर्जेन के प्रति संवेदनशील होते हैं, यानी उनके शरीर में ब्लड में विशेष रूप से रहने वाली इम्युनोग्लोबुलिन E (IgE) एंटीबॉडी हैं। IgE एंटीबॉडीज़ से एलर्जिक रिएक्शन को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। हालांकि, इसके बाद भी एलर्जिक पदार्थों के संपर्क में आने पर उनमें एलर्जिक रिएक्शन हो सकते हैं।
एलर्जी का इलाज और नियंत्रण
एलर्जी की समस्या पूरी तरह से ठीक नहीं हो सकती है, लेकिन उनका इलाज किया जा सकता है और उन्हें बेहतर तरीके से नियंत्रित रखा जा सकता है।
डॉ. जाफरी का कहना है, “एलर्जी को नियंत्रित रखने के लिए एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थों से बचना, एलर्जेन इम्यूनोथेरेपी (डिसेन्सिटाइजेशन) यानी एलर्जी के वैक्सीन और शॉट्स लेना और फार्माकोथेरेपी (जिसमें एंटीएलर्जिक दवाएं शामिल हैं) कराना शामिल है।”
एलर्जी की समस्या को बढ़ने से रोकने के लिए समय पर इलाज कराना चाहिए। डॉ. नरसिम्हन ने कहा, “उदाहरण के लिए, छींक आने जैसी अपर एयरवे के लक्षणों को अनदेखा करने से यह समस्या बढ़ सकती है और लोअर एयरवे में घरघराहट, सीने में जकड़न की समस्याएं हो सकती हैं और फिर व्यक्ति को दवा की ज़रूरत हो सकती है।”
डॉ. नरसिम्हन का कहना है, “समय पर इलाज न होने पर परेशानी और बढ़ जाती है और बचपन में फेफड़ों का सीमित विकास, फेफड़े में कठोरता और वयस्क अवस्था में फेफड़ों के फंक्शन में कमी आ सकती है।”
उन्होंने यह भी कहा कि बिना डॉक्टर की सलाह के एलर्जी की दवाओं को बंद नहीं करना चाहिए।
हाइजीन हाइपोथिसिस
डॉ. जाफरी का कहना है कि हाइजीन हाइपोथिसिस का पालन करना चाहिए, जिसमें बचपन में पराग, धूल, माइक्रोऑर्गेनिज्म्स जैसे एनवायरनमेंट पदार्थों द्वारा होने वाली एलर्जी के कारकों के संपर्क में आना शामिल है, क्योंकि इससे बच्चे का इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है और शरीर को इसकी आदत हो जाती है। बचपन में बहुत अधिक स्वच्छता का पालन करने बच्चे में एलर्जी की समस्या होने की संभावना बढ़ सकती है।
डॉ. जाफरी का कहना है, “एनवायरनमेंट, जानवरों के संपर्क में जल्दी आने से बच्चे में हेल्दी इम्यून सिस्टम विकसित हो सकती है।”
संक्षिप्त विवरण
- एटोपी एलर्जी एक आनुवंशिक समस्या है।
- एटोपिक समस्याओं में एलर्जिक डर्मेटाइटिस, एलर्जिक राइनाइटिस, एलर्जिक अस्थमा और फूड एलर्जी होना शामिल हैं।
- आमतौर पर एटोपी से बचपन में एटोपिक डर्मेटाइटिस की समस्या होती है।
- एटोपिक डर्मेटाइटिस से लेकर एलर्जिक राइनाइटिस और अस्थमा की समस्या को एटोपिक मार्च कहते हैं।