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Air Pollution Tips: जानें ज़हरीली हवा संक्रमण का कारण कैसे बनती है
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Air Pollution Tips: जानें ज़हरीली हवा संक्रमण का कारण कैसे बनती है

दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर में चिंताजनक वृद्धि के साथ, 'गंभीर' वायु गुणवत्ता ने देश की राजधानी को फिर से वेंटिलेटर पर डाल दिया है। यहां तक कि घर से बाहर निकलना भी स्वास्थ्य चिंता का विषय बन गया है।

दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर में चिंताजनक वृद्धि के साथ, ‘गंभीर’ वायु गुणवत्ता ने देश की राजधानी को फिर से वेंटिलेटर पर डाल दिया है। यहां तक कि घर से बाहर निकलना भी स्वास्थ्य चिंता का विषय बन गया है। वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के कारण सरकार ने 10 नवंबर तक प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने, शहर के भीतर भारी वाहनों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने और घर से काम करने को प्रोत्साहित करने सहित कई आपातकालीन प्रदूषण नियंत्रण उपायों की घोषणा की है। सरकार ने 13 नवंबर से कारों के लिए ऑड-ईवन नियम की भी घोषणा की है।

 

जानें कैसे बढ़ रहा है संक्रमण?

दिल्ली में डॉक्टर पहले से ही खराब हवा के कारण वायरल संक्रमण में वृद्धि देख रहे हैं। मणिपाल अस्पताल, द्वारका, दिल्ली के डॉ दविंदर कुंद्रा, सलाहकार पल्मोनोलॉजिस्ट कहते हैं कि “जब भी वायु प्रदूषण बढ़ता है, वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण में भी वृद्धि होती है। पार्टिकुलेट मैटर PM2.5 वायरल, बैक्टीरिया और फंगल बीजाणुओं को फेफड़ों में गहराई तक ले जाता है और निमोनिया का कारण बनता है, खासकर ज़्यादा जोखिम वाले समूहों जैसे बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाएं।” उन्होंने कहा कि ज़हरीली हवा की गुणवत्ता और प्रदूषित हवा फेफड़ों की प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है, जिससे कमज़ोर लोग निमोनिया जैसे संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं।

डॉ. कुंद्रा का कहना है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण के कारण पिछले दस दिनों में अस्पताल की ओपीडी में आने वाले लोगों की संख्या में 50-60% की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, अस्पताल में भर्ती हर दो में से एक व्यक्ति श्वसन संबंधी समस्याओं से पीड़ित है।

अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) जैसी स्थितियों से पीड़ित लोगों ने देखा है कि उनके लक्षण बढ़ गए हैं। डॉ कुंद्रा अस्थमा से पीड़ित एक 40 वर्षीय व्यक्ति के मामले को याद करते हुए हैं जो तीन सप्ताह पहले ही काफी स्थिर था और हाल ही में उसे छाती में सिकुड़न और घरघराहट होने पर चिकित्सा सहायता की आवश्यकता पड़ी। डॉ. कुंद्रा कहते हैं, “उसे भर्ती करना पड़ा। वह 48 घंटे तक ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहे और उनकी हालत में सुधार हुआ। वह पहली बार था जब उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट की ज़रूरत पड़ी।”

डॉ. कुंद्रा कहते हैं कि जिन लोगों को सांस संबंधी कोई बीमारी नहीं है, उनमें भी सीने में जकड़न, सांस लेने में तकलीफ और नाक बहना जैसे लक्षण विकसित हो सकते हैं। दिल्ली वायु प्रदूषण से चिंतित डॉ. कुंद्रा ने कहा कि “हम पहले से ही ऐसे मामले देख रहे हैं जहां युवाओं में नाक में खुजली, गले में जलन, घरघराहट, छाती से सीटी (साएं-साएं) जैसी आवाज होना। गले में खराश एक आम लक्षण रहा है।”

 

वायु प्रदूषण आपके शरीर के प्रत्येक भाग को करता है प्रभावित

सिर्फ ऊपरी श्वसन संक्रमण ही नहीं, वायु प्रदूषण का प्रभाव मानव के प्रत्येक अंग पर पड़ता है। मणिपाल अस्पताल, दिल्ली की संक्रामक रोगों की सलाहकार डॉ. अंकिता बैद्य कहती हैं, “कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर युक्त यौगिकों जैसी बहुत सारी ऑक्सीडेटिव गैसें हैं जो आपके फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकती हैं और फेफड़ों और शरीर के अन्य हिस्सों को ऑक्सीडेटिव तनाव या ऑक्सीडेटिव नुकसान पहुंचा सकती हैं।”

सर गंगा राम अस्पताल, नई दिल्ली के चेस्ट मेडिसिन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ सलाहकार डॉ. बॉबी भालोत्रा का कहना है कि पीएम 2.5 के सूक्ष्म कण आपके वायुमार्ग में प्रवेश कर सकते हैं और आपके फेफड़ों के माध्यम से, यह आपके शरीर के अन्य हिस्सों में जा सकते हैं, जिससे सूजन हो सकती है और जिससे कई अंगों पर असर पड़ता है।

 

फेफड़े

हालांकि, प्रदूषित हवा में सांस लेने से जो अंग सबसे पहले प्रभावित होता है, वह आपके फेफड़े हैं। डॉ बैद्य कहते हैं, “सुबह की हवा भारी और ठंडी होती है, इसलिए धुंध सतह के करीब होती है। ऐसे में अगर आप सुबह-सुबह स्मॉग के बीच जॉगिंग कर रहे हैं और एक्सरसाइज के साथ डीप इनहेलेशन कर रहे हैं तो प्रदूषित हवा आपके फेफड़ों में ज्यादा जाएगी। इसलिए इनडोर व्यायाम का सुझाव दिया जाता है।”

डॉ. भालोत्रा का कहना है कि प्रदूषित हवा में सांस लेने का तत्काल प्रभाव श्वसन पथ पर महसूस होता है – इससे खांसी, सीने में दर्द, गले में जलन और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है।

ज़हरीले प्रदूषक आपके फेफड़ों तक जा सकते हैं, जिससे ब्रोंकाइटिस का खतरा बढ़ जाता है। सूजन होने पर ब्रांकाई सिकुड़ जाती है (संकीर्ण हो जाती है)। विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार संपर्क में रहने से फेफड़ों का कैंसर और अस्थमा का खतरा भी बढ़ सकता है।

 

त्वचा

वायु प्रदूषण के स्तर में बढ़ोतरी त्वचा को भी प्रभावित कर सकती है, जिससे त्वचा में खुजली और जलन हो सकती है।

 

आंखें

वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से आंखों में पानी आना, लालिमा और जलन की समस्या हो सकती है। इससे आंखें भी शुष्क हो जाती हैं।

 

हृदय

यूनाइटेड स्टेट्स एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) द्वारा किए गए शोध के अनुसार, पीएम 2.5 की बढ़ी हुई सांद्रता के अल्पकालिक संपर्क से हृदय रोग से संबंधित दिल के दौरे और मौतें हो सकती हैं, जबकि लंबे समय तक संपर्क में रहने से हृदय संबंधी मृत्यु का खतरा बढ़ सकता है।

भरपूर मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट का सेवन करने से आपकी प्रतिरक्षा बनाने और प्रदूषकों के ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद मिलती है। डॉ. बैद्य कहते हैं, डॉक्टर की सलाह से फलों, सब्जियों और ओमेगा3 फैटी एसिड और विटामिन ई जैसे सप्लीमेंट का सेवन करने से मदद मिलेगी। उन्होंने आगे कहा, “ऑक्सीडेटिव तनाव आपके शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है और स्ट्रोक और अन्य हृदय संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकता है।”

 

वायु-प्रदूषण और निर्जलीकरण (Dehydration)

डॉ कुंद्रा कहते हैं कि वायु प्रदूषण से निर्जलीकरण (Dehydration) हो सकता है। कई लोगों को सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द हो रहा है, जो वायु प्रदूषण के गैर-श्वसन लक्षण हैं। “सर्दियों के दौरान, जब तापमान गिरता है, तो किसी को बहुत अधिक प्यास नहीं लगती और वह पानी पीना छोड़ देता है। इससे कमज़ोरी, सिरदर्द और कुछ संवेदनाएं हो सकती हैं जिन्हें वे समझा नहीं सकते। जब शरीर पर्याप्त रूप से हाइड्रेटेड नहीं होता है, तो इससे प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है और संक्रमण हो सकता है।”

 

घर के वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की है आवश्यकता

जब बाहरी प्रदूषण बढ़ता है तो घर के अंदर का वायु प्रदूषण भी बढ़ता है। ऐसी किसी भी चीज़ से बचना सबसे अच्छा है जो घर के अंदर प्रदूषण बढ़ाती है जैसे की अगरबत्ती या धूप। एयर प्यूरिफायर का उपयोग करने के बजाय, आप इनडोर पौधे लगा सकते हैं जो अधिक ऑक्सीजन पैदा करते हैं। अपने घर की खिड़कियों को बंद रखें।

टेकअवे

दिल्ली का वायु प्रदूषण अत्यधिक चिंता का विषय रहा है, क्योंकि उत्तर भारत में पराली जलाना जारी है। शहर में फैली ज़हरीली हवा के कारण पहले से ही वायरल संक्रमण में वृद्धि हुई है। जिस हवा में हम सांस लेते हैं वह दुर्गंधयुक्त हो जाती है। व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं, घर से बाहर निकलना एहतियाती उपायों के साथ खुद को सुरक्षित रखने का मामला बन गया है।

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