कुछ आसान लाइफस्टाइल बदलाव और सामान्य देखभाल के साथ, आप अपने आंखों की रोशनी के नुकसान के जोखिम को बहुत कम कर सकते हैं।
आपको लगता है कि आंखों की सामान्य बीमारियों की रोकथाम करना मुश्किल है, लेकिन ऐसा है नहीं। आप कुछ उपाय अपनाकर अपनी आंखों की रोशनी को सुरक्षित कर सकते हैं, जैसे हेल्दी डायट का सेवन करना, धूम्रपान छोड़ना, शराब को कम करना, सुरक्षा उपाय अपनाना, और अल्ट्रावियोलेट विकिरण से अपनी आंखों की सुरक्षा करना।
अधिकांश लोग साल में कम से कम दो बार आप्थमालजिस्ट के पास ज़रूर जाते हैं। इसी तरह डायबिटीज़ और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या वाले लोग या ग्लूकोमा की फैमिली हिस्ट्री वाले लोगों की गितनी जोखिम वाले ग्रुप में होती हैं, जो सबसे अधिक आप्थमालजिस्ट से सलाह लेते हैं।
रेगुलर चेकअप
चेकअप के समय विभिन्न बीमारियों, जैसे आयु से संबंधित बीमारी या अन्य बीमारियों के कारण इंट्राओकुलर प्रेशर में अंतर के कारण डॉक्टर द्वारा विभिन्न प्रोसीज़र की सलाह दी जाती है।
मदुरई के अरविंद आई हॉस्पिटल के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. आर. किम कहते हैं, “डायबिटीज रेटिनोपैथी और ग्लॉकोमा, दो साइलेंट किलर्स [आंखों के लिए] हैं, जिसके कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं, इसलिए इन पर ध्यान देना ज़रूरी है। ग्लूकोमा और/या डायबिटीज की फैमिली हिस्ट्री वाले लोगों को वर्ष में कम से कम एक बार अपना आई प्रेशर चेक कराने के लिए कंप्यूटर एग्जामिनेशन कराना चाहिए।”
सेंटर फॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन, यूएस के अनुसार, जिन लोगों में ग्लूकोमा होने का खतरा है या जिनकी फैमिली में ग्लूकोमा की हिस्ट्री रही है, उन्हें हर दो वर्ष में एक बार आंखों की पूरी जांच करानी चाहिए।
डॉ. किम कहते हैं, “ग्लूकोमा, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हाई कोलेस्ट्रॉल- ये सभी आंखों की कई बीमारियां पैदा कर सकते हैं और इनकी नियमित जांच की जानी चाहिए।”
यूवी किरणों से सुरक्षा
अल्ट्रावायलेट या यूवी रेडिएशन कार्सिनोजेनिक हो सकता है और इसकी अधिक मात्रा आपके रेटिना को नुकसान पहुंचा सकती है।
रिसर्च से पता चला है कि यूवी किरण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से आंखों में कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे फोटोकरेटाइटिस; सूर्य की रोशनी से कॉर्निया और कंजंक्टिवा का जलना (वेल्डर फ्लैश के नाम से भी जाना जाता है), सोलर रेटिनोपैथी, मोतियाबिंद, आईलिड एरिथेमा और रेटिनल में नुकसान।
गुरुग्राम के फोर्टिज मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के आप्थमालजी विभाग की डायरेक्टर डॉ. अनीता सेठी कहती हैं, “ग्रहण के दौरान हम लोगों को सूर्य को डायरेक्ट न देखने की सलाह देते हैं, इसका कारण यही है कि अल्ट्रावायलेट रेडिएशन रेटिना के बीच वाले भाग पर पड़ता है, जिससे सोलर बर्न की समस्या हो जाती है।”
डॉ. सेठी का कहना है, ”यही नियम दैनिक जीवन में भी अपनाना चाहिए। यूवी रेडिएशन की अधिकता आयु से संबंधित मैक्युलर के नुकसान के मुख्य कारणों में से एक है। इसका कोई इलाज नहीं है, क्योंकि स्केरिंग और नर्व डैमेज को वापस ठीक नहीं किया जा सकता है। इसलिए, जब सूर्य की रोशनी बहुत अधिक हो और पूरे दिन धूप का चश्मा पहनने की सलाह दी जाती है।”
बुजुर्ग में भी मोतियाबिंद की समस्या यूवी रेडिएशन के अत्यधिक संपर्क में आने के कारण होती है। ये किरण ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस के दौरान ऑक्सीजन को आंखों में अस्थिर कर देते हैं, जिससे केमिकल रिएक्शन शुरू होता है और आंखों के लेंस को बनाने वाले प्रोटीन को नुकसान पहुंचाता है। इससे लेंस धुंधला दिखने लगता है, क्योंकि क्षतिग्रस्त प्रोटीन एक साथ मिल जाते हैं और रेटिना पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय आंखों में प्रवेश करने वाली रोशनी को फैला देते हैं।
आंखों को हेल्दी बनाने के लिए 20-20-20 नियम का पालन
डिजिटल आई स्ट्रेन, कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम (CVS) की एक बीमारी है, जो दुनिया भर में 60 मिलियन लोगों को प्रभावित करती है। इसका आसान उपाय है: आंखों की कृत्रिम आंसू का उपयोग करना, ’20-20-20 नियम’ लागू करना और कंप्यूटर में लंबे समय तक काम करते समय चेतना के साथ बार-बार आंखों को ब्लिंक करना।
आंखों के डॉक्टर द्वारा सुझाया गया ’20-20-20′ नियम अपनाना बहुत आसान है। इसके लिए बस स्क्रीन को लगातार 20 मिनट तक देखने के बाद, 20 फुट दूर रखे गए किसी दूसरी वस्तु को 20 सेकंड तक देखना होता है।
यह प्रैक्टिस आपके आंखों की मांसपेशियों को आराम देता है, जो लंबे समय तक स्क्रीन देखने के बाद कठोर हो जाते हैं। यह आंसुओं की परत फैलाने और कॉर्निया को नम और चिकनाईयुक्त रखने में भी मदद करता है। रिसर्च से यह भी पता चला है कि कंप्यूटर पर कुछ समय काम करने के बाद प्रति मिनट हमारी पलक झपकने की स्पीड पहले 17 पलक झपकने की तुलना में घटकर 6 पलक झपकने तक रह जाती है।
नुकसान पहुंचाने वाली आदतों पर नियंत्रण पाएं
पर्याप्त नींद न लेना, सही भोजन न करना और धूम्रपान और अत्यधिक शराब पीने जैसी खराब आदतों के कारण टॉक्सिक एम्ब्लियोपिया नामक समस्या हो सकती है। एम्ब्लियोपिया को “लेज़ी आई” कहा जाता है, जो एक ऐसी बीमारी है, जिसमें एक आंख की वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता खत्म हो जाती है, जबकि दूसरी आंख पूरी तरह ठीक होती है, जिससे निष्क्रिय आंख झुकी हुई दिखाई देती है।
रिसर्च से यह भी पता चला है कि अगर सही समय पर ठीक से ध्यान न दिया जाए, तो शराब और तंबाकू के अत्यधिक सेवन से भी आंखों की रोशनी में काफी कमी आ सकती है।
सही डायट से फायदा
बेंगलुरु के नारायण नेत्रालय के वाइस चेयरमेन और क्लिनिकल साइंटिस्ट डॉ. रोहित शेट्टी कहते हैं, “डायट ही सब कुछ है। अगर शरीर को अच्छा पोषण मिलेगा, तो आंखों को भी अच्छा पोषण मिलेगा।”
हमारी आंखों को कुशलता से काम करने के लिए रेटिनॉल या विटामिन A की ज़रूरत होती है। यह हरी पत्तियों वाली सब्जियां, गाजर, पत्तागोभी और पालक, आम, पपीता, खुबानी और लाल मिर्च सेवन से मिल सकता है। पनीर, अंडे, तैलीय मछली, दूध और दही में पाया जाता है।
यूके के एनएचएस के अनुसार, पुरुष के शरीर को दिन के कम से कम 700 माइक्रोग्राम (MG) की ज़रूरत होती है, जबकि महिलाओं को 600 MG की ज़रूरत होती है। यह उस डायट को फॉलो करके प्राप्त किया जा सकता है, जिसमें उपरोक्त फूड पदार्थों में से कुछ पदार्थ शामिल हैं।