असंतुलित आहार और सुस्त जीवनशैली जैसे कारणों की वजह से पेट में चर्बी जम रही है जिससे हृदय की समस्याओं और स्ट्रोक के जोखिम वाले लोगों की तादाद भी बढ़ रही है।
पेट में जमने वाली चर्बी या उदर क्षेत्र का मोटापा चिंता का बड़ा विषय बन चुका है। पिछले दो वर्षों में महामारी के कारण लॉकडाउन और उसके चलते वर्क–फ्रॉम–होम संस्कृति की लोकप्रियता से गतिहीन जीवनशैली का प्रचलन बढ़ गया है जिसकी चपेट में युवा पीढ़ी भी आ गई है। इसके परिणाम स्वरूप लोगों में वजन बढ़ने और पेट के चारों ओर फैट जमने जैसी स्थितियों ने उनमें हृदय की समस्याओं और स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा दिया है।
बेंगलुरु के 34 वर्षीय आईटी पेशेवर श्रीराम (अनुरोध पर नाम बदल गया है) को दो साल से ज्यादा हो गया था घर से काम करते हुए। उनके दिन व्यस्ततापूर्ण और गतिहीन थे। दो महीने पहले उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी। वे धूम्रपान करते थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि फेफड़े की किसी समस्या के कारण उनकी शारीरिक सहनशक्ति कम हो गई है। श्रीराम ने डॉक्टर की सलाह लेकर इलाज शुरू किया, लेकिन दवाओं का असर लंबा नहीं चला। सांस लेने में तकलीफ होने के कारण वे ठीक से सो भी नहीं पा रहे थे।
ईसीजी (ECG), ब्लड टेस्ट (blood test) और एंजियोग्राम (angiogram) करवाने के बाद, बेंगलुरु के मणिपाल हॉस्पिटल्स के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ. प्रदीप हरनहल्ली ने पाया कि श्रीराम के दिल में 95 प्रति शत ब्लॉकेज है। श्रीराम को तुरंत सर्जरी करनी पड़ी।
श्रीराम कहते हैं, “डॉ. प्रदीप ने बताया कि मेरी गतिहीन जीवनशैली, पेट में जमी चर्बी, खान-पान और धूम्रपान ब्लॉकेज के कारण थे। लम्बाई के आधार पर मेरा वज़न 75 किलोग्राम के आसपास होना चाहिए था, लेकिन मेरा वज़न लगभग 89 किलोग्राम था। डॉक्टर ने मुझे अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव लाने की सलाह दी है।”
पेट की चर्बी क्या है?
डॉ. हरनहल्ली कहते हैं कि आमतौर पर हमारे खान-पान और उपयोग की जाने वाली कैलोरी के बीच का असंतुलन पेट में चर्बी जमने का सबसे बड़ा कारण है। प्राथमिक तौर पर शारीरिक गतिविधि की कमी, गतिहीन जीवनशैली और असंतुलित आहार के कारण ऐसा होता है।
वे बताते हैं कि किताबी विवरण के अनुसार भारत में 45-प्लस उम्र के लोगों में दिल का दौरा पड़ने का जोखिम होता है, मगर इस डेटा को संशोधित करने का समय शायद आ गया है। वे कहते हैं, “हमारे प्रैक्टिस में हम 35-प्लस आयु वर्ग को भी हृदय की समस्याओं के साथ आते हुए देखते हैं।” उनका निष्कर्ष है, “उन्हें अपनी शारीरिक गतिविधि और आहार में सुधार करके पेट की चर्बी कम करने का प्रयास जारी रखना चाहिए।”
चेन्नई स्थित अपोलो हॉस्पिटल्स के सीनियर कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट और इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट (electrophysiologist) डॉ एएम कार्तिगेसन कहते हैं कि पेट का मोटापा एक आम समस्या है। “यह इंसुलिन प्रतिरोध, लिपिडेमिया (कोलेस्ट्रॉल के स्तर में असामान्यताएं) और रक्तचाप के जोखिम को बढ़ाता है। इन सभी मुद्दों को एक साथ मेटाबोलिक सिंड्रोम (metabolic syndrome) कहा जाता है। दिल का दौरा पड़ने के खतरे से इसका सीधा संबंध है। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खान-पान और जीवनशैली में गतिहीनता के कारण आज की युवा आबादी पेट के मोटापे के प्रति अधिक संवेदनशील है।” उनका कहना है कि धूम्रपान जैसे अन्य कारकों से भी दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है।
वे कहते हैं, “पश्चिमी देशों में दिल का दौरा 65 साल से अधिक उम्र के लोगों को पड़ता है, लेकिन भारत में उससे कम उम्र के लोगों में भी हमें ऐसे मामले दिखते हैं। तीस के दशक में भी लोगों को दिल का दौरा पड़ता है। इसका एक मुख्य कारण पेट का मोटापा या मेटाबोलिक सिंड्रोम है।“
मोटापे का निर्धारण कैसे किया जाता है?
डॉ हरनहल्ली बताते हैं, “बॉडी मास इंडेक्स (body mass index) मोटापा निर्धारण करने का एक तरीका है, जिसमें कद को वजन के वर्ग से विभाजित किया जाता है। एब्डोमिनल (उदर) कर्व (abdominal curve) मोटापा निर्धारित करने का दूसरा तरीका है। आमतौर पर, एशियाई पुरुषों का एब्डोमिनल कर्व 40 इंच (या 102 सेंटीमीटर) से अधिक होने पर, एवं एशियाई महिलाओं का एब्डोमिनल कर्व 35 इंच (या 85 सेंटीमीटर) से अधिक होने पर हम इसे ओबेसिटी (obesity) या मोटापा कहते हैं।” हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि जातियों के आधार पर मोटापे की परिभाषा अलग होती है।
क्या बड़ा पेट दिल की बीमारी का लक्षण है?
डॉ कार्तिगेसन पेट के मोटापे को दिल का दौरा पड़ने का “सबसे बड़ा गुनहगार” बताते हैं। वे कहते हैं, “जोखिम कारक पर अगर ध्यान न दिया जाए और पेट का मोटापा बना रहे तो दूसरी बार दिल का दौरा पड़ने का ज़्यादा खतरा होता है। हम रोगियों को जंक फूड खाने में कटौती करने और पेट के मोटापे को कम करने की सलाह देते हैं। साथ ही, दिल का दौरा पड़ने और स्ट्रोक के निरंतर जोखिम को कम करने के लिए पैदल चलने जैसे व्यायाम करने की भी सलाह देते हैं।“
पेट की चर्बी सबसे खतरनाक है जो आंतरिक अंगों को चारों ओर से घेर सकती है। विसरल फैट (visceral fat ) (उदर में जमने वाला फैट) से शरीर के टिशू (ऊतकों / tissues) में सूजन आ सकती है और लिपिड का स्तर बढ़ा सकता है। साथ ही, यह रक्त वाहिकाओं (blood vessels) को भी संकीर्ण कर सकता है। हार्वर्ड हेल्थ (Harvard Health) के अनुसार, किसी व्यक्ति के शरीर में कुल फैट का 10 प्रति शत विसरल फैट (visceral fat ) होगा।
पेट की चर्बी का संबंध एक्टोपिक फैट (लिवर, हार्ट, पैंक्रियास और मांसपेशियों में जमने वाला फैट) से भी होता है, जो एथेरोस्क्लेरोसिस (atherosclerosis), कोरोनरी हार्ट डिजिज (coronary heart disease) और उच्च रक्तचाप (hypertension) के जोखिम को बढ़ाता है।
डॉ हरनहल्ली कहते हैं, “शरीर में फैट टिशू का बढ़ना शरीर में सूजन का स्रोत है, जिससे दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। पेट की चर्बी का अन्य प्रभाव है शारीरिक वज़न। वज़न बढ़ने से रक्तचाप में वृद्धि हो सकती है। हर 10 किलो वजन बढ़ाने पर ब्लड प्रेशर 3 से 4mmHg तक बढ़ जाता है और दिल का दौरा पड़ने की संभावना 12 फीसदी बढ़ जाती है।“
2020 में हनीह मोहम्मदी, जोएल ओह्म, एंड्रिया डिस्कासियाती आदि ने ‘एब्डोमिनल ओबेसिटी एण्ड द रिस्क ऑफ रेकरंट एथेरोस्क्लेरोटिक कार्डियोवासकुलर डिजिज आफ्टर मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन‘ नामक एक अध्ययन यूरोपियन सोसाइटी ऑफ़ कार्डियोलॉजी की एक पत्रिका यूरोपियन जर्नल ऑफ़ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी में प्रकाशित की। इसके अनुसार पेट के मोटापे से ग्रस्त लोगों को बार–बार दिल का दौरा पड़ने का अधिक खतरा होता है।
शोधकर्ता मोहम्मदी ने एक प्रेस रिलीज़ में कहा, “हमारे अध्ययन में पेट के मोटापे के बढ़ते हुए स्तर वाले रोगियों में घटनाओं के दोबारा होने का जोखिम था, बावजूद इसके कि वे आमतौर पर पेट के मोटापे से जुड़े जोखिम कारकों – जैसे एंटी–हाइपरटेन्सिव, डायबिटीज और लिपिड को कम करने वाली दवाइयाँ ले रहे थे।”
मोटापे और हृदय रोग के बीच की कड़ी
डॉ. हरनहल्ली का कहना है कि हृदय संबंधी समस्याओं के जोखिम को कम करने के लिए डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल, बीपी को नियंत्रण में रखने के साथ-साथ पेट की चर्बी को कम करना भी ज़रुरी है। जानिए क्यों:
पेट की चर्बी से कोलेस्ट्रॉल का स्तर बिगड़ सकता है। यह अच्छे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर सकता है और खराब कोलेस्ट्रॉल एवं ट्राइग्लिसराइड्स (triglycerides) के स्तर को बढ़ा सकता है। एचडीएल (HDL) या अच्छा कोलेस्ट्रॉल भी एलडीएल (LDL) या खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इससे ब्लड प्रेसर बढ़ सकता है क्योंकि मोटापे से ग्रस्त लोगों को शरीर में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के संचालन के लिए ज़्यादा रक्त की आवश्यकता पड़ती है। बढ़ा हुआ ब्लड प्रेसर दिल का दौरा पड़ने का एक जोखिम कारक है।
पेट के मोटापे से ग्रस्त लोगों में डायबिटीज होने का खतरा अधिक होता है, जिससे उनमें हृदय रोग होने का जोखिम दो से चार गुना बढ़ जाता है।
यह विसरल और एक्टोपिक फैट से जुड़ा हुआ है, जो आंतरिक अंगों में फैट जमने और सूजन के घटक हैं और इससे दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है।
बेली फैट और दिल का दौरा पड़ने का खतरा
विशेषज्ञ सहमत हैं कि पेट में जमा चर्बी बार–बार दिल का दौरा पड़ने का एक जोखिम कारक है। साथ ही, दिल का दौरा पड़ चुके लोगों को घटना के तुरंत बाद किसी तरह की शारीरिक गतिविधि में शामिल नहीं होना चाहिए। स्वस्थ्य होने की प्रक्रिया को समय देना और दिल को आराम देना जरूरी है।
डॉ. हरनहल्ली का कहना है कि प्राथमिक लक्ष्य स्वस्थ्य होना है। वे कहते हैं, “दिल का दौरा पड़ने पर दिल की मांसपेशियों की चोट पहुँचता है, और इसे उबरने में समय लगता है। स्वस्थ्य होने में दिल की मदद करना लंबे समय और बीच के लक्ष्यों के लिए महत्वपूर्ण है। आराम करने और दिल को ठीक होने देने को प्राथमिकता देनी चाहिए। व्यक्ति धीरे–धीरे वजन कम करने और पेट की चर्बी को कम करने के लिए शारीरिक गतिविधियों या आहार से जुड़े उन उपायों को शुरू कर सकते हैं और उन्हें जारी रख सकते हैं, जो फिर से दिल का दौरा पड़ने के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं।”
डॉ कार्तिगेसन कहते हैं कि स्वस्थ्य होने में चार से छह सप्ताह तक समय लग सकता है एवं व्यायाम करने की सलाह घटना की तीव्रता के आधार पर दी जाती है। “खान-पान में तुरंत बदलाव लाया जा सकता है, मगर व्यायाम शुरू करने से पहले डॉक्टर से मिलकर स्ट्रेस टेस्ट करवाना चाहिए जिससे दिल के रक्त पम्प करने की क्षमता और शारीरिक सहनशक्ति का पता चलता है।”
मगर हर घटना अलग है। डॉ हरनहल्ली कहते हैं, “दिल का दौरा पड़ने की सभी घटनाएँ एक जैसी नहीं होती हैं और सभी व्यक्ति एक ही हालत में नहीं होते हैं। कुछ लोगों की स्थिति गंभीर हो सकती है, जबकि पहले चरण में डॉक्टर की मदद लेने वालों की स्थिति नियंत्रण में हो सकती है। आनुमानिक रूप से व्यक्ति को दो हफ्ते आराम करना चाहिए और बिना किसी तनाव के रहना चाहिए। फिर वे अपनी नियमित गतिविधियाँ दोबारा शुरू कर सकते हैं, एवं धीरे–धीरे, अपनी शारीरिक सहनशक्ति को ध्यान में रखते हुए, उन्हें बढ़ा सकते हैं।”
आईटी कर्मी श्रीराम कहते हैं कि उन्होंने तय कर लिया है कि वे अब शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय रहेंगे और थोड़ी देर टहलने लगे हैं। वे बताते हैं, ”मैं पूरी तरह से स्वस्थ्य नहीं हुआ हूं और इसलिए डॉक्टर ने मुझे सलाह दी है कि मैं ज्यादा मेहनत वाला वर्कआउट न करूं।”
पेट में जमने वाली चर्बी अपने आप में एक जोखिम कारक है। सामान्य स्थितियों में, जैसे–जैसे लोग बूढ़े होते हैं, उनका मसल मास (muscle mass) कम होता जाता है और फैट जमने लगता है, मगर उनका शारीरिक वजन आदर्श बना रहता है। डॉ हरनहल्ली कहते हैं, “आदर्श शारीरिक वजन बनाए रखने का हमेशा यह मतलब नहीं होता कि जोखिम कम है। हमें यह समझना पड़ेगा कि मसल मास कम हुआ है और उसकी जगह फैट जमा हुआ है। वजन सामान्य होने के बावजूद, पेट की चर्बी के कारण ऐसे लोगों में दिल का दौरा पड़ने का खतरा अधिक होगा, उन लोगों की तुलना में जिनके पेट का मोटापा कम है।“
डॉ हरनहल्ली एब्डोमिनल ओबेसिटी से ग्रस्त एक 52 वर्षीय गृहिणी के मामले को याद करते हैं, जिन्हें दिल में ब्लॉकेज के कारण चलने में दिक्कत हो रही थी। इस वजह से वे शारीरिक रूप से और ज़्यादा निष्क्रिय हो गईं थीं, जिससे उनका शारीरिक वजन बढ़ गया था। इसका असर उनके घुटने और टखने के जोड़ों पर भी पड़ा। चलने पर उनकी सांस फूलती थी।
हालत बिगड़ने पर डॉ. हरनहल्ली के पास सलाह के लिए आई महिला की एंजियोप्लास्टी (angioplasty) की गई। डॉक्टर ने बताया, “स्वस्थ्य होने के बाद, उन्होंने अपनी शारीरिक गतिविधि को बढ़ाया और छह महीने में 20 किलो वजन कम करने में कामयाब रही। इससे उनके घुटने और टखने के जोड़ों में भी सुधार हुआ।“