मेटाबोलिकली हेल्दी ओबेसिटी को मोटापा कहते हैं। भले ही इससे मेटाबोलिक संबंधी समस्याएं नहीं होती है, लेकिन यह मानसिक स्वास्थ्य और गतिशीलता को प्रभावित कर सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मोटापा ‘शरीर में असामान्य रूप से फैट का जमा होना और उससे स्वास्थ्य संबंधी जोखिम होना’ है, लेकिन बहुत से लोग मोटे होते हुए भी बिना किसी मेटाबोलिक स्वास्थ्य समस्या के स्वस्थ रह सकते हैं। इस स्थिति को मेटाबोलिकली हेल्दी ओबेसिटी या MHO कहा जाता है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि वे पूरी तरह सुरक्षित हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति ने उचित समय पर इलाज नहीं कराया, तो उन्हें अन्य प्रकार के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
मेटाबोलिकली हेल्दी ओबेसिटी क्या है?
हैप्पीएस्ट हेल्थ के साथ एक ईमेल से बातचीत में बोस्टन मेडिकल सेंटर स्थित ओबेसिटी मेडिसिन के डायरेक्टर डॉ. इवानिया रिज़ो ने MHO के संदर्भ में मेटाबोलिकली हेल्दी के बारे में बताया, “इसमें मोटापे में होने वाली मेटाबोलिक समस्याएं, जैसे इंसुलिन रजिस्टेंस, हाई ब्लड प्रेशर और डिस्लिपिडेमिया (अनहेल्दी लिपिड लेवल) नहीं होती हैं।”
वेल्लोर के क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज के डायबिटीज और मेटाबोलिज्म एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर और हेड डॉ. नितिन कपूर के अनुसार, “MHO का इस्तेमाल हाई बॉडी मास इंडेक्स (मोटापे की रेंज – भारतीय सेटिंग में BMI>/= 25 किलोग्राम/m2) वाले व्यक्ति के लिए किया जाता है, जिन्हें मोटापे से जुड़ी कोई मेटाबोलिक समस्याएं नहीं होती हैं। हालांकि, हाल ही के रिसर्च यह पता चला है कि यह फीनोटाइप केवल ट्रांजिशन का शुरुआती चरण है। MHO को मेटाबोलिकली हेल्दी ओबेसिटी के पहले चरण के रूप में जाना जाता है, जो संभवतः इलाज करने और अधिक समस्याओं के बढ़ने के खतरे का संकेत देता है।”
क्या कोई मेटाबोलिकली हेल्दी के साथ मोटा भी रह सकता है?
डॉ. रिज़ो का कहना है कि बॉडी मास इंडेक्स (BMI) की गणना किसी व्यक्ति के वज़न को किलोग्राम में उसकी लंबाई के वर्ग मीटर से विभाजित करके की जाती है और इसका उपयोग अक्सर मोटापे को वर्गीकृत करने के लिए एक स्क्रीनिंग टूल के रूप में किया जाता है। BMI किसी व्यक्ति की स्वास्थ्य की स्थिति की पूरी जानकारी नहीं देता है। मोटापे वाले कुछ व्यक्तियों में सामान्य मेटाबोलिक प्रोफाइल हो सकती है और मोटापे से संबंधित समस्याएं होने का जोखिम कम हो सकता है, लेकिन उसी BMI वाले अन्य लोगों को तुलनात्मक रूप से इसके विपरीत हो सकता है।
डॉ. कपूर कहते हैं, “MHO सामान्य फेनोटाइप के बिल्कुल विपरीत है, जिसे हम भारतीय परिवेश में नॉर्मल वेट ओबेसिटी (NWO) कहते हैं।”
केरल की उनकी टीम द्वारा कई गई एक रिसर्च में (जिनके को-आर्थर डॉ. कपूर भी थे) में NWO की व्यापकता 30 प्रतिशत के करीब पाई गई। ये सभी ऐसे व्यक्ति हैं, जिनका BMI सामान्य है (BMI के अनुसार मोटे नहीं हैं, लेकिन शरीर में फैट प्रतिशत अधिक है), लेकिन अक्सर डायबिटीज, हायपरटेंशन और डिस्लिपिडेमिया जैसी मेटाबोलिक समस्याएं होती हैं।
मेटाबोलिकली हेल्दी ओबेसिटी
डॉ. रिज़ो कहते हैं कि MHO का सटीक कारण पूरी तरह नहीं पता और इस पर रिसर्च चल रहा है। वहीं डॉ. कपूर ने कहा कि जो भी चीज़ व्यक्ति के मोटापे का कारण बनती हैं, जैसे आनुवंशिक गुण, खराब डायट का सेवन और फिज़िकल ऐक्टिविटी की कमी आदि, वही MHO के लिए भी ज़िम्मेदार हैं।
डॉ. रिज़ो का कहना है कि ऐसा लगता है कि MHO में फैट वितरण के महत्व सहित कुछ कारक बायोलॉजिकल मैकेनिज़्म से जुड़े हुए हैं। MHO वाले व्यक्तियों में एक्टोपिक फैट (लिवर में कम फैट और वाइसरल फैट) की मात्रा कम होती है, हाई लैग फैट अधिक होता है और सबक्यूटेनियस फैट टिश्यू के विस्तार की क्षमता बढ़ जाती है। MHO वाले व्यक्तियों में इंसुलिन संवेदनशीलता और बीटा-सेल फंक्शन सुरक्षित होता है।
ओबेसिटी सोसाइटी के मेंबर डॉ. रिज़ो कहते हैं कि मोटापा बार-बार होने वाली और लगातार बढ़ने वाली बीमारी है। मल्टी-एथनिक स्टडी ऑफ एथेरोस्क्लेरोसिस (MESA) के अनुसार, लगभग 50 प्रतिशत लोगों को बेसलाइन पर MHO के रूप में परिभाषित किया गया था और उन्हें लगभग 12 साल के दौरान मेटाबॉलिक समस्याएं होने लगीं। 12 स्टडी के एक अन्य मेटा-एनालिसिस में यह पता चला कि 10 वर्ष से अधिक अवधि में, MHO के रूप में पहचाने गए आधे से अधिक लोगों में मेटाबोलिक परेशानियां हुई। इसलिए समय पर इलाज कराना ज़रूरी है, क्योंकि MHO वाले लोगों में मेटाबोलिकली हेल्दी लोगों की तुलना में कार्डियो-मेटाबोलिक रोग होने का जोखिम बढ़ जाता है।
मोटापे में कौन सी मेटाबोलिक समस्याएं होती हैं?
MHO वाले लोगों में निम्नलिखित समस्याएं होने की संभावना अधिक होती है:
- टाइप 2 डायबिटीज
- कार्डियोवैस्कुलर रोग
- हाई ब्लड प्रेशर
- कोलेस्ट्रॉल
- नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लीवर डिज़ीज़
- नी ऑस्टियोआर्थराइटिस
- प्लांटर फासिटिस (फुट में फाइब्रस टिश्यू का सूजन)
- ऑब्सट्रक्टिव स्लीप अपनिया
डॉ. कपूर कहते हैं, “मेटाबोलिकली हेल्दी ओबेसिटी को स्वस्थ स्थिति नहीं कहा जा सकता है। मेटाबोलिक समस्याएं केवल मोटापे से संबंधित समस्याओं में से एक कारण है। मोटापा गतिशीलता से भी जुड़ी होती है और इसके मनोवैज्ञानिक परिणाम होते हैं। वज़न का मैकेनिकल प्रभाव मोटे व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है और इसलिए मेटाबोलिक डिसऑर्डर नहीं होना चाहिए। इसी तरह, मोटापा की समस्या और मनोवैज्ञानिक प्रभाव मेटाबोलिक समस्याओं से जुड़ी अलग-अलग समस्याएं हैं और वज़न बढ़ाने की प्रवृति से अधिक जुड़ा हुआ है।”
मेटाबोलिकली हेल्दी ओबेसिटी की रोकथाम और इलाज
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि भविष् की समस्याओं को रोकने के लिए सबसे बेहतर उपाय के रूप में हेल्दी लाइफस्टाइल का पालन करें। डॉ. कपूर कहते हैं कि इनका उल्लेख हाल ही में प्रकाशित एंडोक्राइन सोसाइटी ऑफ इंडिया के दिशानिर्देशों में भी किया गया है।
- कैलोरी का सेवन सीमित रूप से करें और इसके प्रतिशत पर नियंत्रण रखें।
- प्रोटीन की सुझाई गई मात्रा ही लें।
- समय पर खाएं।
- फैट से भरपूर भोजन से बचें।
- नियमित एक्सरसाइज़ करें, कम से कम 150 मिनट की मध्यम-तीव्रता एरोबिक ऐक्टिविटी और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग लें
- स्ट्रेस मैनेजमेंट का तरीका अपनाएं
- पर्याप्त नींद लें
- धूम्रपान न करें और अल्कोहल सीमित करें
- अपने फिजिशियन/एंडोक्राइनोलॉजिस्ट से सलाह लें कि इसे कैसे मैनेज करें।
डॉ. रिज़ो कहते हैं, “मोटापा बार-बार होने वाली और बढ़ने वाली बीमारी ह और स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के लिए सभी उपलब्ध इलाज पर चर्चा करना ज़रूरी है।”
संक्षिप्त विवरण
- मेटाबोलिकली हेल्दी ओबेसिटी या MHO का अर्थ इन्सुलिन रजिस्टेंस, हाई ब्लड प्रेशर और डिस्लिपिडेमिया जैसी मेटाबोलिक परेशानियों का न होना है।
- अगर समय पर इलाज नहीं किया गया, तो MHO वाले लोगों में डायबिटीज़, हार्ट डिजीज़ और कोलेस्ट्रॉल जैसी मोटापे से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं होने का अधिक जोखिम हो जाता है।
- आनुवंशिक गुण, खराब डायट का सेवन और सीमित फिज़िकल ऐक्टिविटी MHO के लिए ज़िम्मेदार हो सकते हैं।
मोटापे की समस्याओं को रोकने के लिए एकमात्र उपाय हेल्दी लाइफस्टाइल का पालन करना है।