आयुर्वेदिक नेज़ल थेरेपी : शुभा साजन कुछ वर्षों से नाक बंद होने की समस्या से परेशान थीं। यह समस्या उन्हें कभी जीवन शैली के बदलावों और पर्यावरण में छोटे-छोटे बदलावों के कारण होती रहती थी। भाप लेने या जल्दी सोने जैसे उपायों से भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था और उनकी नाक बंद होने की समस्या जस की तस बनी रहती थी।
बेंगलुरु की 48 वर्षीय यह गृहिणी बंद नाक के इलाज के लिए प्रायः घरेलू इलाज ही पसंद करती हैं। भले ही इससे उन्हें कोई मदद नहीं मिली और सामान्य सर्दी और छींक की समस्या भी जस की तस बनी रही। एक दिन, उसने एक आयुर्वेदिक डॉक्टर के पास जाने का फैसला किया। उनके डॉक्टर ने सात दिनों के लिए नस्य थेरेपी की सलाह दी और खाने के लिए कुछ आयुर्वेदिक दवाएं भी दी।
साजन ने बताया, “एक मसाज टेबल पर लिटाकर मेरे चेहरे पर भाप दिया गया। मेरे सिर, गर्दन और कंधों की धीरे-धीरे मालिश की गई और इसके लिए तुलसी के पत्तों के साथ सुझाए गए तेल का उपयोग किया गया। इस तेल के मिश्रण की तीन बूंदें दाईं ओर के नाक में डाली गईं। इसके बाद डॉक्टर ने गर्दन के नीचे एक गर्म तौलिये को रोल करके रखा और सिर को पीछे की ओर झुका दिया गया। इस इलाज के बाद मेरी बंद नाक की समस्या ठीक हो गई और अगले कुछ हफ्तों तक मुझे निगलने में कोई समस्या नहीं हुई।”
नस्य (आयुर्वेदिक नेज़ल थेरेपी) क्या है?
नस्य या इंट्रा-नेजल ड्रग थेरेपी एक तरह का मेडिकल उपाय है, जिसमें नाक से अलग-अलग तेलों, सूखे पाउडर या जड़ी-बूटियों, घी और औषधीय काढ़े और दूध सहित दवाओं का उपयोग किया जाता है। यह पंचकर्म के लिए अपनाई जाने वाली एक प्रक्रिया है, जिसमें नाक में हर्बल तेल दिया जाता है और इससे तेल नाक के छेद और मुंह में चला जाता है और शरीर से नुकसानदायक पदार्थों को बाहर निकालता है।
एससीपीएम आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज, उत्तर प्रदेश के पंचकर्म विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. गोपीलदेव टी जी कहते हैं, “नस्य नाक के छिद्र को साफ करने और अपर रेस्पिरेटरी सिस्टम को स्वस्थ बनाने में मदद करता है।”
कोचीन, केरल के इंदीवरम आयुर्वेद क्लिनिक की पंचकर्म विशेषज्ञ डॉ. अनखा वेणुगोपाल कहती हैं, “नासिका छिद्र शरीर में प्राण (जीवन की सांस) वायु का मार्ग है। अपने शरीर को संतुलन में रखने के लिए नासिका और नासिका मार्ग को हमेशा स्वस्थ रखना चाहिए।”
यह थेरेपी सिर और गर्दन से अतिरिक्त कफ को बाहर निकालती है। नस्य थेरेपी ड्राई साइनस, पुरानी साइनसाइटिस, सिरदर्द, एलर्जी और कान के इन्फेक्शन, बार-बार होने वाली सर्दी और फ्लू, माइग्रेन, टिनिटस और कंधों के जकड़न की समस्या से राहत दिलाती है। इस थेरेपी से एंग्जायटी, अनिद्रा और भावनात्मक स्ट्रेस से छुटकारा पाने में भी मदद मिलती है।
फ्रंटियर्स इन फार्माकोलॉजी में प्रकाशित 2020 के एक रिसर्च के अनुसार, इंट्रानेजल ड्रग थेरेपी से अल्ज़ाइमर, मिर्गी, पार्किंसंस और बेल्स पाल्सी जैसी न्यूरोडीजेनरेटिव बीमारियों को बेहतर तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है।
डॉ. वेणुगोपाल कहते हैं कि उपयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियों और सामग्री के प्रकार के आधार पर विभिन्न प्रकार की नस्य थेरेपी होती हैं। वे विरेचन नस्य (सफाई), बृह्मण नस्य (पोषक) और शमन नस्य (शामक) हो सकती हैं। इन्फेक्शन या सूजन, सिरदर्द और बुखार के कारण गंभीर रूप से नाक बंद होने पर नस्य थेरेपी की सलाह नहीं दी जाती है। गर्भवती महिलाओं को भी नस्य थेरेपी नहीं लेनी चाहिए।
DIY नस्य
डॉ. गोपीलदेव के अनुसार, “सिर और गर्दन को प्रभावित करने वाली समस्याओं के इलाज, सुरक्षा और रोकथाम के लिए नस्य थेरेपी का उपयोग किया जा सकता है। नेजल थेरेपी को रोज़ की दिनचर्या की तरह किया जा सकता है, जिसका बहुत बेहतर प्रभाव होता है।
नस्य थेरेपी के तहत सामान्य रूप से तिल के तेल, घी, या अनु तैलम (कई जड़ी बूटियों से बना एक तेल) की दो बूंदों को हर सुबह नाक के छिद्र में डाला जाता है।”
आयुर्वेद एक्सपर्ट इस थेरेपी द्वारा मालिश, स्टीम थेरेपी जैसी अन्य प्रोससीज़र के साथ और समस्या के आधार पर नस्य तेल का उपयोग करते हैं।
● घर पर नस्य थेरेपी के लिए तेल की बोतल को गर्म पानी में तब तक गर्म करें, जब तक कि छूने पर तेल गर्म न हो जाए।
● सिर को थोड़ा पीछे की ओर झुकाकर आराम से बैठ जाएं।
● इस तेल से अपने चेहरे की हल्की मालिश करें, ड्रॉपर के माध्यम से दाएं नथुने से नाक में तेल डालें।
● गहराई से सांस लें और फिर बाएं नथुने से भी यही प्रक्रिया दोहराएं। दो मिनट तक इसी स्थिति में रहें।
जब नाक में तेल डाला जाता है, तो वह मुंह से बाहर आ सकता है। तेल (और कफ) को निगलना नहीं चाहिए, बल्कि उसे थूक देना चाहिए। नस्य थेरेपी, नासिका मार्ग को गहराई से साफ करती है और आपको पूरी तरह से आराम
पहुंचाती है। इससे अतिरिक्त बलगम को निकालने और ऊपरी और लोअर रेस्पिरेटरी सिस्टम को साफ करने में मदद मिलती है।
नस्य (आयुर्वेदिक नेज़ल थेरेपी) का सही समय
अगर आप इसे पहली बार कर रहे हैं, तो आप नस्य थेरेपी से असहज महसूस कर सकते हैं, लेकिन धीरे-धीरे एक सप्ताह में आप इसके प्रति सहज हो जाएंगे। इसे खाली पेट करना सबसे अच्छा होता है, क्योंकि दवा के स्वाद से पेट में गड़बड़ी महसूस हो सकती है। कफ (जल तत्व) वाले लोगों को सुबह के समय नस्य थेरेपी करनी चाहिए। पित्त (अग्नि तत्व) वाले लोगों को दोपहर और वात (वायु तत्व) वाले लोगों को शाम को नस्य थेरेपी करनी चाहिए। रात में नस्य थेरेपी न लें, क्योंकि इससे सांस लेने में परेशानी हो सकती है।