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बायोनिक रीडिंग: क्या यह एक झांसा है या वास्तव में उपकारी है?  
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बायोनिक रीडिंग: क्या यह एक झांसा है या वास्तव में उपकारी है?  

बायोनिक रीडिंग स्विस टाइपोग्राफी डिज़ाइनर रेनाटो कैसट द्वारा पेटेंट की गई टेक्स्ट फ़ॉर्मेटिंग की एक विधि है। यह एक शब्द के पहले कुछ अक्षरों को चुनिंदा रूप से बोल्ड करके इस प्रक्रिया को बेहतर बनाने का वादा करती है।

अगर आपको कभी किसी लंबे लेख पढ़ने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी है तो बायोनिक रीडिंग आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।  क्या महज़ फ़ॉन्ट बदलने से आपकी ज़िंदगी बदल सकती है? यह कोई अटपटा सवाल नहीं है। 

टाइपफेस में किस तरह की विशेषताएँ होने पर अटेंशन-डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिस्ऑर्डर (ADHD) और डिस्लेक्सिया (dyslexia) वाले लोगों के लिए किसी टेक्स्ट को पढ़ना और समझना आसान होगा इसे समझने के लिए रिसरचर्स और यूजर एक्सपीरिएंस डिजाइनर कई सालों से टाइपफेस के रद्दोबदल में लगे हुए हैं। 

एडीएचडी (ADHD) एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है, जिसमें ध्यान की कमी, असंगठित होना, और/या अतिसक्रियआवेगी के स्तर ऐसे होते हैं कि ये रुकावट का कारण बन जाते हैं (डीएसएम-5 DSM-5) 

डिस्लेक्सिया (dyslexia) एक खास किस्म का लर्निंग डिसॉर्डर (SLD -specific learning disorder) है जिसमें पढ़ाई में काम आने वाली कुछ क्षमताएँ, जैसे पढ़ने और लिखने में समस्याएं आती हैं (एनएचएस NHS) 

एडीएचडी (ADHD) के इलाज में ज्यादातर दवाइयों का प्रयोग किया जाता है और डिस्लेक्सिया (dyslexia) पूरी ज़िंदगी कायम रहने वाली एक स्थिति है जो लोग इन स्थितियों से पीड़ित हैं, उनके लिए लंबे-लंबे लेख पढ़ना किसी चैलेंज से कम नहीं है। ऐसे में, अगर फ़ॉन्ट जैसा सरल बदलाव इस काम को कम डरावना बनाता है, तो ऐसे बदलाव के आकर्षण को समझना मुश्किल नहीं है। इस बात को ध्यान में रखते हुए, अब ज़रा इस तस्वीर पर नज़र डालें जिसने ट्विटर में धमाल मचा रखा है। 

 

मगर पहले ये जान लेते हैं: जब आप एक वाक्य पढ़ रहे होते हैं, तो आपकी आंखें शुरू से लेकर वाक्य के अंत तक नहीं जाती हैं। वे एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर जाती रहती हैं और इसे फिक्सेशन (fixation) कहा जाता है। 

बायोनिक रीडिंग स्विस टाइपोग्राफी डिज़ाइनर रेनाटो कैसट द्वारा पेटेंट की गई टेक्स्ट फ़ॉर्मेटिंग की एक विधि है। यह एक शब्द के पहले कुछ अक्षरों को चुनिंदा रूप से बोल्ड करके इस प्रक्रिया को बेहतर बनाने का वादा करती है। दाईं तरफ दिया गया उदाहरण अगर आपको पढ़ने और समझने में आसान लग रहा है तो आप यूजर एक्सपीरिएंस डिज़ाइन (UX) के सबसे नए ट्रेंड के टारगेट ऑडियंस में हो सकते हैं। 

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS) में क्लिनिकल न्यूरोसाइकोलॉजी और कॉग्निटिव न्यूरोसाइंस सेंटर की प्रमुख डॉ. जमुना राजेश्वरन बताती हैं कि यह उसी तरह से काम करता है जिस तरह हमारी आँखें चावल के ढेर में मिट्टी के एक छोटे से गोले को देख लेती हैं।  

राजेश्वरन ने बताया, कॉगनिटिव साइकोलॉजी के क्षेत्र में ध्यान (attention) और एकाग्रता (concentration) पर किए गए रिसर्च ने यह पहले ही साबित कर दिया है कि जब एक स्टिमुलास (उत्तेजक) में ऐसी विशेषताएं होती हैं जो इसे दूसरों से अलग करती हैं (रंग, आकार और शैलियों में अंतर), तब आदतन इंसान का ब्रेन उस पर ध्यान देता है।” वे आगे बताती हैं कि अगर जानकारी में कमी होती है तो ब्रेन अपने-आप उसे पूरा करता है। इस कौशल की भी यहाँ भूमिका हो सकती है। 

अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) से दुनियाभर के लगभग 5.9 प्रति शत युवा और 2.9 प्रति शत वयस्क ग्रसित हैं (अफ्रीका को छोड़कर बाकी क्षेत्रों में किए गए अध्ययन के डेटा के अनुसार)। इस तकनीक में वे लोग काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं क्योंकि एडीएचड़ी वाले लोगों को अकसर जानकारी से भरे बहुत लंबे नॉनफॉर्मेटेड लेख पढ़ने में कठिनाई होती है। बायोनिक रीडिंग (bionic reading) इसे आसान बनाने का दावा करता है।  

इस तरीके पर अभी बहुत ज़्यादा रिसर्च नहीं किया गया है, मगर अध्ययन बताते हैं कि पाठ के कुछ हिस्सों को हाइलाइट किए जाने पर एडीएचड़ी वाले लोग पढ़ने के कार्यों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। साल 2000 में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि जिन छात्रों में ध्यान की कमी होती है, वे उस काम को ज़्यादा मन लगाकर करते हैं जब उसमें नवीनता होती है। साल 2012 की एक लिटरेचर रिव्यू में इस बात का ज़िक्र किया गया है कि एडीएचडी वाले उन छात्रों में जिनमें और कोई डिसेबिलिटी नहीं है, उन्हें साइकोस्टिमुलेंट (psychostimulant) दवा का कोई लाभ नज़र नहीं आया। मगर ऐसे बच्चों के रीडिंग और मैथ के मटेरियल में विजुअल स्टिमुलेशन ज़्यादा होने पर उनके रीडिंग स्कोर में सुधार हो सकता है। 

 क्याबायोनिक रीडिंग” (bionic reading) विजुअल स्टिमुलेशन के इस उद्देश्य पूरा कर रहा है? नतीजा आना अभी बाकी है। लेकिन एडीएचड़ी (ADHD) ट्विटर पर कई लोग इस तकनीक के फायदे की वाहवाही कर रहे हैं, और किंडल जैसे अन्य रीडिंग ऐप के साथ इसे जोड़े जाने की मांग कर रहे हैं।  मगर इस बात का फैसला अब तक नहीं हुआ है कि यह एडीएचडी में वाकई में मदद कर सकता है या नहीं 

 डॉ राजेश्वरन बताती हैं कि एडीएचडी का असर पढ़कर समझने की क्षमता से ज़्यादा मन लगाए रखने पर पड़ता है: ” एडीएचडी  डिस्लेक्सिया (dyslexia) से अलग है। एडीएचडी में व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है एकाग्रता से किसी काम को कर पाना। एकाग्र होने पर, व्यक्ति को आम तौर पर लिखी हुई जानकारी को समझने में कोई दिक्कत नहीं होती है।”  

इस तरह से फ़ॉन्ट की सजावट करने से कुछ लोगों को पढ़ने में ज़्यादा कठिनाई हो सकती है, मगर रिसर्च यह भी बताता है कि किसी चीज़ को पढ़ने में जितना अधिक समय बिताया जाता है, वह उतना ही बेहतर समझ में आता है। साल 2018 में आरएमआईटी ऑस्ट्रेलिया (RMIT Australia) के रिसरचर्स ने टूटेफूटे अक्षरों वाला एक फॉन्ट तैयार किया, जिसमें टाइपफेस से कुछ हिस्से गायब थे। हिस्सों के ग़ायब होने के बावजूद, उसे पढ़ना संभव हो पा रहा था क्योंकि आपका मन उन खाली स्थानों को भर देता है। सैन्स फोर्गेटिका (Sans Forgetica) का सिद्धांत हैवांछनीय कठिनाईसीखने की प्रक्रिया में जब एक बाधा जोड़ी जाती है, तो उसके कारण हम कोशिश भी ज़्यादा करते हैं। यह याद रखने की प्रक्रिया को बेहतर बनता है (better memory retention) जिससे गहरे स्तर पर संज्ञान की प्रक्रिया (cognitive processing) को बढ़ावा मिलता है। 

कैसट की वेबसाइट में यह भी दावा किया गया है कि बायोनिक रीडिंग (bionic reading) डिस्लेक्सिया (dyslexia) वाले लोगों की मदद कर सकता है।हमें डिस्लेक्सिया (dyslexia) वाले लोगों से प्रतिक्रिया मिली है कि वे बायोनिक रीडिंग (bionic reading) के लिए शुक्रगुजार हैं, क्योंकि पहली बार पढ़ने पर ही उन्हें विभिन्न तरह के लेख तुरंत समझ में आ गए, जो इससे पहले असंभव था। 

कुछ डेवलपर्स तो ऐसे एक्सटेंशन बना भी चुके हैं जिनसे आप अपने ब्राउज़र, पीडीएफ रीडर और कुछ आईओएस (iOS) ऐप्स में बायोनिक तरीके से पढ़ने की कोशिश कर सकते हैं। 

क्या डिस्लेक्सिया (dyslexia) के मामले में टाइपफेस से फर्क पड़ सकता है? डच डिज़ाइनर क्रिश्चियन बोअर नेडिस्लेक्सीफ़ॉन्ट के ज़रिए बिलकुल यही करने की कोशिश की। इस फॉन्ट में कई डिज़ाइन एलीमेंट्स हैं, जैसे कि अक्षरों के निचले हिस्से को बोल्ड किया गया है ताकि डिस्लेक्सिया (dyslexia) वाले लोग कुछ अक्षरों के बीच क्या फर्क है उसे समझ पाएँ। डिस्लेक्सिया (dyslexia) वाले लोग थ्री- डायमेंशनल (तीनआयामी) सोच रखते हैं। वे शब्दों और अक्षरों को स्थान बदलते हुए आकारों के रूप में देखते हैं, जिनमें लंबाई और चौड़ाई में कुछ बदलाव होते रहते हैं। इसके कारण “b” और “d” जैसे समान आकार के अक्षरों के फर्क को समझना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। 

एक तरफ जहाँ इस फ़ॉन्ट को अब तक हजारों बार डाउनलोड किया जा चुका है, वहीं साल 2017 के एक अध्ययन में डिस्लेक्सिया (dyslexia) वाले जिन बच्चे ने इसका इस्तेमाल किया और जिन बच्चों ने इसका इस्तेमाल नहीं किया दोनों दलों की पढ़ने की क्षमता में कोई अंतर नहीं पाया गयाकुछ अध्ययनों से यह भी पता चला है कि टाइम्स न्यू रोमन जैसे स्टैन्डर्ड फॉन्ट में अक्षरों के बीच की दूरी को बढ़ाने से वह पढ़ने में ज़्यादा आसान बन सकता है। 

डॉ. राजेश्वरन इस बात से सहमति जताते हुए कहती हैं: “डिस्लेक्सिया (dyslexia) का विज्ञान अब तक परफ़ेक्ट नहीं हुआ है और हम नहीं जानते हैं कि लॉ ऑफ क्लोजर (जानकारी में कमी होने पर उसे भरने में ब्रेन की भूमिका) लर्निंग डिसेबिलिटी वाले लोगों पर उसी तरह से लागू होता है या नहीं। 

अगर इसके बाद आप पढ़ने के तेज तरीकों के बारे में जानना चाहते हैं तो आप स्पीड रीडिंगस्पेस का पता लगा सकते हैं। यह एक ऐसी कम्युनिटी है जो (तथ्यों को) पढ़ने और समझने की आपकी क्षमता को अधिकतम करने की कोशिश में लगा हुआ है।स्पेस रीडिंगपढ़ने का एक तरीका है जहां आप अपना ध्यान शब्दों के बीच के खाली जगहों पर केंद्रित करते हैं यह तरीका एक से दूसरे शब्द तक सरकने की आपकी आँखों की द्रुत क्रिया का उपयोग करता है। इस क्रिया को सिकाड (saccade) कहते हैं, और इसके ज़रिए आप टेक्स्ट पर ज़्यादा आसानी से आँखें फेर सकते हैं। 

 

 

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