एक्सपर्ट् के अनुसार, सभी लोगों को स्वस्थ बने रहने और विभिन्न शारीरिक रोगों की रोकथाम के लिए मौसमी स्वच्छता को अपनाना चाहिए।
मौसम में होने वाला बदलाव एक बेहतरीन मौका होता है, जिसमें हम अपनी गतिविधियों से थोड़ा विराम ले सकते हैं और जीवन के संतुलन को बिगाड़ने वाले कारणों का मूल्यांकन कर सकते हैं, उन्हें ठीक कर सकते हैं और सुधारने के लिए कार्यवाई कर सकते हैं।
अगर पतझड़ का मौसम है, तो हमें पेड़ों से प्रेरणा लेना चाहिए, उन चीज़ों को छोड़ देना चाहिए, जो अब आपके काम नहीं आतीं और जीवन में बैलेंस बनाना चाहिए। जनवरी में कड़ाके की ठंड होती है, लेकिन साथ ही यह भरोसा भी होता है कि वसंत ऋतु बहुत दूर नहीं है।
आयुर्वेदिक साहित्य के अनुसार, हमें नए मौसम का भरपूर उपयोग करते हुए स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए अपने आपको स्वच्छ बनाना चाहिए, जिसे ऋतु शोधन कहते हैं।
अमेरिकी निवासी इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल मिन्ही कुन्हीरामन मौसमी स्वच्छता पाने के लिए, बिना कोई अनेदखी किए हर वर्ष भारत आती हैं। हैप्पीएस्ट हेल्थ से बात करते हुए वह बताती हैं, “मानसून के दौरान 14 दिनों की डिटॉक्स थेरेपी या आयुर्वेदिक स्वच्छता मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से तरोताज़ा कर देती है। मेरी पाचन शक्ति और भूख ठीक हो जाती है और मैं आराम महसूस करती हूं।”
कुन्हीरामन कहती हैं, “मैं दो हफ्ते की थेरेपी में एक महीने के पथ्य (निर्धारित डायट और लाइफस्टाइल पैटर्न) का पालन करती हूं। मैंने कुछ किलो वज़न कम किया है और भविष्य के लिए ऊर्जावान महसूस कर रही हूं।”
आयुर्वेद में मौसमी स्वच्छता एक धीरे-धीरे पूरी की जाने वाली प्रक्रिया है, जो शरीर से नुकसानदायक पदार्थों या आम को बाहर निकालती है और अच्छे पाचन और संपूर्ण स्वास्थ्य के साथ ऊर्जावान, हल्का, मानसिक रूप से चुस्त होने का एहसास देती है।”
मौसमी इंफेक्शन और अन्य समस्याएं
चंडीगढ़ की ऑथर और आयुर्वेद कंसल्टेंट डॉ. सोनिका कृष्णन कहती हैं, “किसी के शरीर में नुकसानदायक पदार्थ, मुख्य रूप से डायट और लाइफस्टाइल संबंधी खराबी और मौसम में होने वाले बदलावों से संबंधित होती है और इससे ही सांसों से संबंधित बीमारी, स्किन की एलर्जी और पेट की परेशानी जैसी बीमारियां होती हैं। इसके अलावा, स्ट्रेस और एंग्जायटी जैसी कुछ बीमारियां भी होती हैं।”
एक्सपर्ट्स के अनुसार, शरीर को डिटॉक्स करने के लिए ध्यान केंद्रित करने वाली मौसमी स्वच्छता प्रक्रिया का पालन करना ज़रूरी है। यह प्रक्रिया समय के साथ जमा हुए किसी भी शारीरिक और भावनात्मक नुकसानदायक पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल देती है। स्वच्छता से मन और शरीर को प्राकृतिक संतुलन और सर्वोत्तम स्वास्थ्य पाने में मदद मिलती है।
डिटॉक्स के लिए सही समय
आयुर्वेदिक प्रैक्टिशनर डॉ. कृष्णन का कहना है, “समय-समय पर शरीर को संतुलित करने और नुकसानदायक पदार्थों को कम करने के लिए डिटॉक्सिफिकेशन और ओवरहॉल प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। मौसमी डिटॉक्सिफिकेशन ही शरीर को स्वच्छ बनाने का सही समय है। मानसून, वसंत और शरद ऋतु की शुरुआत आयुर्वेदिक शुद्धिकरण थेरेपी और डिटॉक्सिफिकेशन प्रक्रिया के लिए उपयुक्त समय है। डिटॉक्सिफिकेशन थेरेपी के लिए आदर्श समय वह समय है, जब शरीर बाहरी बदलावों के साथ एडजस्ट हो रहा है। जब शरीर में स्वाभाविक रूप से बदलाव हो रहा है, और हानिकारक पदार्थ पहले से ही शरीर से बाहर निकल रहे हैं, तो यह डिटॉक्स थेरेपी सेशन के लिए सर्वोत्तम समय हो जाता है।”
उदाहरण के लिए, वसंत ऋतु की सफाई आमतौर पर वसंत ऋतु आने से पहले की जाती है। इसी प्रकार, पतझड़ से पहले पतझड़ की सफाई की जाती है। प्रत्येक मौसम में असंतुलन की समस्या होती है और उसके अनुसार सफाई की ज़रूरत भी होती है।
संतुलन बनाना, स्वास्थ्य सुधारना और इम्यूनिटी ठीक करना
यूएसए के वाशिंगटन स्थित ऑर्गेनिक आयुर्वेद इंक के चीफ आयुर्वेद कंसल्टेंट और प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. कार्तिक कृष्णा का कहना है, “मौसमी डिटॉक्स प्रक्रिया पिछले मौसम में जमा हुए दोषों को दूर करने में मदद करता है। आयुर्वेदिक डिटॉक्स प्रक्रिया के दौरान, जोश और जीवन शक्ति में बहुत वृद्धि होती है, स्किन और आंतों में सुधार होता है और शरीर के अतिरिक्त वज़न में कमी आती है। कोई भी मानसिक स्वास्थ्य लाभ देख सकता है, क्योंकि इससे शारीरिक स्वच्छता और उमंग में बढ़ोतरी की भावना महसूस होती है।”
सही आयुर्वेद डायट का पालन करके नेचुरल तरीके से शरीर को शुद्ध किया जा सकता है, जिसमें प्लान को पूरा करने के लिए न्यूट्रिशन सप्लीमेंट और जड़ी-बूटियां, सांस लेने वाली एक्सरसाइज़, योग और हाइड्रोथेरेपी किए जाते हैं।
आयुर्वेद डिटॉक्स डाइट और थेरेपी
डॉ. कृष्ण का कहना है, “डिटॉक्सिफिकेशन व्यक्ति की ज़रूरतों के लिए तैयार किया जाना चाहिए। किसी व्यक्ति के लिए विशेष डायट और डिटॉक्स प्रोग्राम अपनाने से पहले किसी व्यक्ति के शरीर के प्रकार, हेल्थ हिस्ट्री और वर्तमान स्थिति पर विचार करना चाहिए।”
वह आगे कहती हैं कि आयुर्वेदिक डिटॉक्स ‘डायट’ वास्तव में उपवास का एक तरीका है और इसका उद्देश्य केवल ताज़े, कच्चे फल और उबली हुई मौसमी सब्जियां, पानी और दही के साथ पेट को राहत देना है। इसमें कोई भी मांस, भारी, मसालेदार और तले हुए भोजन, शराब, चाय या कॉफी का सेवन नहीं किया जाता है।
रॉबर्ट ई. हेरॉन, पीएचडी और जॉन बी. फगन, पीएचडी द्वारा किए गए रिसर्च के अनुसार, ऋतु शोधन या मौसमी स्वच्छता से पर्यावरणीय कारकों और जैव संचय के कारण शरीर में मौजूद नुकसानदायक पदार्थों के लेवल को कम करने में प्रभावी परिणाम दिखाए दिए हैं।
डॉ. कृष्णन सावधान करती हैं कि समस्याओं से बचने के लिए मौसमी डिटॉक्सिफिकेशन थेरेपी को हमेशा क्लीनिकल देखरेख और निगरानी में करना चाहिए।
मौसम में बदलावन के दौरान इन बातों का पालन करें
बदलते मौसम के पहले दो सप्ताह में एक्सपर्ट निम्न सलाह देते हैं
- नए मौसम के लिए उपयुक्त डायट लें, जिसमें ताज़ा पका हुआ, मौसमी फूड्स शामिल हो। कोशिश करें कि फूड्स स्थानीय उत्पादित ही हों।
- प्रोसेस किए गए, फ्रोजन या डिब्बाबंद फूड्स के साथ-साथ भारी, तैलीय, या फ्राइड फूड्स से बचें।
- शरीर से नुकसानदायक पदार्थों को बाहर निकालने के लिए गर्म पानी और हर्बल चाय का खूब सेवन करें। कुछ सुझाए गए जड़ी-बूटियां, जैसे अश्वगंधा, अदरक, हल्दी, तुलसी और नीम का सेवन करें।
- योग, ताई-ची और पैदल चलने जैसे हल्की एक्सरसाइज़ करें, जो मन और शरीर को स्वस्थ बनाते हैं।
- स्ट्रेस कम करने वाली तकनीक अपनाएं, जैसे मेडिटेशन, प्राणायाम या योग निद्रा।
- ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाने और स्किन के हेल्थ में सुधार करने के लिए गुनगुने हर्बल ऑयल के साथ दैनिक मसाज लें।
- शरीर को सुधारने और स्वच्छ करने के लिए केमिकल के अलावा अभ्यंग, पंचकर्म या डिटॉक्सिफिकेशन जैसी आयुर्वेदिक थेरेपी अपनाएं।
- जर्नलिंग एक शक्तिशाली टूल है, जिसका उपयोग भावनात्मक डिटॉक्सिफिकेशन के लिए किया जा सकता है और यह मौसमी बदलाव के दौरान भी काम आ सकता है। अपनी भावनाओं और शारीरिक स्थिति के बारे में लिखने के लिए रोज़ कुछ मिनट निकालकर कोई भी व्यक्ति अपने बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।