क्या आपको भी टाइप 2 डायबिटीज को मैनेज करने में परेशानी हो रही है। बेंगलुरु निवासी डायबिटोलॉजिस्ट डॉक्टर अश्विता श्रुति दास ने वाक द टॉक के साथ टाइप 2 डायबिटीज को मैनेज करने के लिए बहुत ही ज़रूरी जानकारी दी है। डॉ. दास को पहले गेस्टेशनल डायबिटीज और फिर बाद में टाइप 2 डायबिटीज होने का पता चला, जो अपने अनुभव से प्रोफेशनल और पर्सनल लेवल पर ब्लड ग्लूकोज के जोखिम को समझा रही हैं।
इस पैंतीस वर्षीय डॉक्टर ने कहा, “मैंने टाइप 2 डायबिटीज़ को मैनेज करने के लिए कई उपाय किए, ताकि मुझे यह जानकारी हो सके कि इसमें क्या काम करेगा और क्या नहीं करेगा। मुझे लगता कि टाइप 2 डायबिटीज़ को मैनेज करने के लिए, नियमित एक्सरसाइज़ करना और नियंत्रित रहना, सही डायट लेना एक कारगर उपाय है। इससे ही मुझे अपने शुगर लेवल को अच्छी तरह नियंत्रित करने में मदद मिली। दरअसल इसके लिए कोई शॉर्टकट नहीं है।”
दास के अनुसार, “मैं रोज़ शाम को ट्रेडमिल पर चलती हूं। यह मेरा सबसे बेहतर उपाय है, जिसमें मैं गैजेट से भी मुक्त रहती हूं और मेरा वज़न और डायबिटीज़ भी नियंत्रण में रहता है।”
दास के पति एक डेंटल स्पेशलिस्ट है और फिटनेस को लेकर बहुत जागरूक रहते हैं। दास अपने पति के बारे में बताती हैं, “फिटनेस को लेकर मेरे पति की सोच का बहुत लाभ मुझे मिला और मैं प्रेरित होकर नियमित रूप से एक्सरसाइज़ रूटीन को फॉलो कर पाई।”
डायबिटोलॉजिस्ट बनने के पीछे की कहानी
जब करियर चुनने की बात आई, तो दास ने अपनी पसंद को तुरंत जान लिया। वह पहले से ही डायबिटोलॉजिस्ट बनना चाहती थीं। डॉ. दास कहती हैं, “मेरे माता-पिता को डायबिटीज था। जब मैं कॉलेज में दूसरे वर्ष में थी, तो डायबिटीज से संबंधित समस्याओं के कारण मेरे पिता की मृत्यु हो गई, जिसने मुझे सबसे अधिक प्रेरित किया। इसके बाद से ही मैं डायबिटोलॉजिस्ट बनना चाहती थी और हमेशा डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों की मदद करना चाहती थी।”
आज दास एक डॉक्टर हैं। अभी वह मणिपाल में हेल्थ-चेक कंसल्टेंट (MRCP टेस्ट की तैयारी भी कर रही हैं) के रूप में काम कर रही हैं, साथ ही Sugar।fit में डायबिटीज़ के लिए ऑनलाइन कंसल्टेशन देने का भी काम करती हैं। वह लोगों की समस्याओं के अनुसार उन्हें ज़रूरी दवाओं और इंसुलिन की सलाह देकर, उनके शुगर लेवल को मैनेज करने का काम करती है।
टाइप 2 मधुमेह का प्रबंधन क्या है
वर्ष 2016 दास के लिए सबसे टर्निंग पॉइंट था, क्योंकि MD फार्माकोलॉजी को पूरा करने के बाद उन्हें इसी साल मणिपाल में फेलोशिप के लिए चुना गया। उनका सबसे बड़ा सपना सच हो गया, लेकिन साथ ही वह जुड़वा बच्चों के साथ गर्भवती भी हो गईं। शुरुआत में उन्हें डर भी लगा, लेकिन दास ने हिम्मत करके एक साथ अपने एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के फेलोशिप को पूरा करने और गर्भावस्था के बीच संतुलन बनाने का निर्णय लिया।
एन्डोक्राइन विभाग में रहने के कारण वह अक्सर अकेले ही अपने शो का संचालन करती थीं। वह कहती हैं, “यह कोई आसान काम नहीं था, लेकिन मैंने इसे अपनी पसंद से किया और अपनी गर्भावस्था के साथ मैनेज भी किया। गर्भावस्था के दौरान मेरा वज़न भी बढ़ रहा था। जब मेरे पांच महीने हो गए, तो लोग पूछा करते थे कि क्या मैं किसी भी दिन डिलीवरी के लिए तैयार हूं।”
फैमिली की पहले से डायबिटीज और PCOD हिस्ट्री होने के कारण, दास हमेशा अपने शुगर लेवल की जांच करती थी और उसे सामान्य रखती थीं। गर्भावस्था के 24वें सप्ताह में उनकी गायनीकोलॉजिस्ट ने उन्हें कॉरिडोर में चलने से मना कर दिया और सीढ़ियों का उपयोग करने की सलाह दी। उन्हें लगा कि इससे मेरा शुगर लेवल बढ़ सकता है।
दास कहती हैं, “मुझे लगता है कि कम ऐक्टिविटी शुगर लेवल के बढ़ने से सीधे जुड़ी हुई है। मुझे इन्सुलिन पर रखा गया। गर्भवती होने के बाद भी मैं दिन में छह बार अपने शुगर लेवल की जांच करती थी और हॉस्पिटल को मैनेज भी करती थी। जब गर्भावस्था 30 सप्ताह तक पहुंचा, तो मुझे घर में ही रहने की सलाह दी गई। इससे मैं ज़्यादा काम नहीं कर पाती थी। इसका असर यह हो गया कि शुगर लेवल बढ़ना शुरू हो गया।”
वह कहती हैं, “जब वह 30 इन्सुलिन यूनिट की डोज़ लेती थीं, तब उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि शुगर लेवल और न बढ़े। शुगर लेवल मैनेज नहीं करने पर अक्सर बड़े बच्चों की डिलीवरी होती है। हालांकि डिलीवरी के बाद जल्द ही मेरा शुगर लेवल ठीक हो गया और इंसुलिन या दवा बंद हो गई।”
डिलीवरी के बाद, दास अच्छी मां बनने की गुण सीखने लगी और ऐसे में अपने स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल नहीं कर पाईं। इसका परिणाम यह हुआ कि छह महीने बाद उनके हाथों में सुन्न होने की समस्या शुरू होने लगी। पहले उन्होंने सोचा कि यह शायद बच्चों को हाथों में पकड़ने के कारण हो रहा है, लेकिन जब उन्होंने अपने शुगर लेवल की जांच की, तो पता चला कि लेवल 456 तक पहुंच गया था।
उन्हें फिर से मेडिसिन और इन्सुलिन लेने की सलाह दी गई और ऐसे में बच्चों को फॉर्मूला दूध दिया जाने लगा, जो दास को पसंद नहीं था।
दास ने कहा कि ऐसा अपने देखभाल को अनदेखा करने और 20 kg वज़न बढ़ने के कारण हुआ, जो नहीं होना था। वज़न बढ़ने के कारण वर्टिब्रल डिस्क की समस्या भी होने लगी, जिसके लिए मुझे सर्जरी करानी पड़ी। इसके साथ ही, इसी साल मुझे अपने गैलस्टोन को निकलाने के लिए एक दूसरी सर्जरी भी करानी पड़ी।
हाई शुगर पर नियंत्रण
सर्जरी कराने के बाद, मैंने नियमित रूप से ट्रेडमिल पर एक्सरसाइज़ करनी शुरू की और जागरूक होकर वज़न घटाने पर ध्यान दिया। शुरुआत में धीरे-धीरे चलती थी, लेकिन जल्द ही मैं 9 या 10 की स्पीड पर चलने लगी।
दास ने चावल, शुगर और मैदा (रिफाइन्ड आटा) खाना बिल्कुल बंद कर दिया, लेकिन अपने रोज़ के अपने डायट में दो छोटे डोसा को बंद नहीं कर सकीं। फलों में वह केवल तरबूज का सेवन करती थीं।
उन्होंने कहा कि एक और चीज ने मुझे बहुत फायदा पहुंचाया और वह है इंटरमिटेंट फास्टिंग। मैं सुबह 7:30 बजे ब्रेकफास्ट करती थी और उसके अगला भोजन हॉस्पिटल से लौटने के बाद शाम 7:30 बजे ही करती थी। मै हॉस्पिटल में केवल शुगर फ्री कॉफी ही पीती थी। फास्टिंग के साथ-साथ मैंने विटामिन B और C सप्लीमेंट लेना शुरू कर दिया, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मुझे विटामिन की कमी हो।
दास कहती हैं, “मेरा HBA1C कुछ महीनों के भीतर ही 14 प्रतिशत से 7 प्रतिशत तक नीचे आ गाया। दास को यह भी एहसास हुआ कि शाम के समय उनका शुगर लेवल (HBA1C 5.4) गिरने लगता था और उन्हें चक्कर आने लगता था।”
डायबिटीज़ एक्सपर्ट के अनुसार, “यह एक संकेत था कि उन्हें इन्सुलिन की ज़रूरत नहीं थी। इसके बाद, उन्हें केवल एक दिन में एक टैबलेट लेने की सलाह दी गई। यह उनके लिए बहुत बड़ी जीत थी।”
आज, दास 20 किलो वज़न कम करके फिट हो गई हैं और स्वस्थ महसूस करती हैं। वह कहती हैं, “ट्रेडमिल पर चलने के अलावा, मुझे लगता है कि परफेक्ट रूटीन कार्डियो एक्सरसाइज़ और वेट ट्रेनिंग, दोनों को शामिल करने से मुझे और लाभ होगा और मैं इसे भी शुरू करने वाली हूं।”
वह मजाक करते हुए कहती हैं कि मेरा कार्डियो तो अपने बच्चों के पीछे-पीछे दौड़ने से ही हो जाता है, जो मुझे हमेशा व्यस्त रखते हैं।