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स्ट्रेस फ्रैक्चर से बचने के उपायों के बारे में जानें
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स्ट्रेस फ्रैक्चर से बचने के उपायों के बारे में जानें

 

स्ट्रेस फ्रैक्चर अधिक तीव्रता वाली ऐक्टिविटीज़, जैसे कठोर सतहों पर लंबी दूरी तक दौड़ने के कारण होने वाली समस्या है। आपका सब कुछ प्लान के अनुसार चल रहा था। एक लंबे ब्रेक के बाद, जब से आपने तेज़ चलने का शेड्यूल शुरू किया है, तब से लगभग तीन सप्ताह हो चुके थे। शरीर अच्छी तरह से काम कर रहा था। आपने चलने की अपनी ऐक्टिविटी को धीमी जॉगिंग में जैसे ही बदला, वैसे ही आपके पिंडली की हड्डी (शीन बोन) में सूजन के साथ हल्का दर्द होने लगा। आप सोच रहे होंगे कि यह क्या हो गया है? यह स्ट्रेस फ्रैक्चर है, लेकिन आप इसे सामान्य दर्द समझकर छोड़ देते होंगे।

दो-तीन दिनों के बाद आपका दर्द के कारण चलना भी मुश्किल होने लगा। आपने सोचा कि कुछ दिनों के आराम के बाद दर्द दूर हो जाएगा और तब तक के लिए आपने आराम कर लिया। आराम के बाद जब आपने फिर से ऐक्टिविटी शुरू की, तो आपको फिर से दर्द होने लगा। इस प्रकार का दर्द, या जिस तरह से यह दर्द बढ़ता है और आपको परेशान करता रहता है, वह स्ट्रेस फ्रैक्चर का एक मुख्य लक्षण है। इसे अपने आप ठीक होने के लिए छोड़ने से दर्द और कष्टदायी हो जाता है, हड्डियों और जोड़ों को नुकसान होता है और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

हड्डियों में माइक्रो फ्रैक्चर

हरियाणा के गुरुग्राम के एस्पायर फिज़ियोथेरेपी की सीनियर स्पोर्ट्स फिज़ियो डिंपल चंद कहती हैं, “स्ट्रेस फ्रैक्चर की समस्या अक्सर धावकों या तेज़ चलने वाले लोगों को होती है, जो अचानक अपना पैटर्न बदलते हैं। प्रत्येक 1,000 ऐक्टिव वॉकर या धावकों में से तीन को स्ट्रेस फ्रैक्चर की समस्या होती है।

चंद कहती हैं, “तेज़ चलने या जॉगिंग करने से स्वास्थ्य लाभ तो होता ही है, साथ ही अलग-अलग स्पीड के साथ हल्के झटकों से कई प्रकार के जोड़ों पर लगातार स्ट्रेस पड़ता है। हमारा शरीर इस प्रकार से बना है कि इन लगातार झटकों या स्ट्रेस को संभाल सकता है, जिसे हम ‘स्ट्रेस शॉक’ के रूप में भी जानते हैं।”

शारीरिक ऐक्टिविटी के दौरान स्ट्रेस शॉक सामान्य बात है, लेकिन कुछ समय बाद और बार-बार झटके लगने के कारण, यह वज़न सहने वाली हड्डियों में स्ट्रेस फ्रैक्चर या हेयरलाइन फ्रैक्चर का कारण बन सकता है।

स्ट्रेस फ्रैक्चर के कारण

स्ट्रेस फ्रैक्चर की समस्या का सबसे आम कारण मांसपेशियों में असंतुलन होना है, जो कठोरता और मांसपेशी संबंधी गलत ट्रेनिंग या कंडीशनिंग के कारण होती है। यह चलने या दौड़ने की स्पीड में अचानक बदलाव करने से अस्थिरता पैदा होने के कारण होता है, जिससे व्यक्ति कमज़ोर हो सकता है।

इसके अलावा, विटामिन D या कैल्शियम की कमी, बहुत पुराने जूते पहनना, ढीले या बहुत कड़े जूते पहनना, फिटनेस लेवल में कमी, शारीरिक ऐक्टिविटी में अचानक वृद्धि, अनियमित और कठोर सतह पर दौड़ना, अधिक एक्सरसाइज़ करना और कमज़ोर हड्डियों के कारण भी स्ट्रेस फ्रैक्चर होता है।

हड्डियों में डेन्सिटी कम होने के कारण वृद्ध लोगों को यह समस्या होने का अधिक खतरा होता है। यह समस्या उन महिलाओं में भी अधिक होती है, जिनके शरीर में मास इंडेक्स कम होता है और मेनस्ट्रुअल साइकल इररेगुलर रहता है। ऑस्टियोपोरोसिस से ग्रस्त लोगों को भी यह समस्या होने की संभावना अधिक होती है।

स्ट्रेस फ्रैक्चर कहां होता है?

आमतौर पर पेल्विस, फीमर, टिबिया, फाइबुला और मेटाटार्सल जैसी वज़न उठाने वाली हड्डियां स्ट्रेस फ्रैक्चर से प्रभावित होती हैं। अगर इसे नज़रअंदाज़ किया गया, तो रीढ़ की हड्डी को भी नुकसान पहुंच सकता है।

चंद कहती हैं, “मांसपेशी के गंभीर रूप से असंतुलन के कारण इस तरह की समस्या लगातार होने लगती है, जिससे घुटने और रीढ़ की हड्डी सहित अन्य महत्वपूर्ण जोड़ों पर स्ट्रेस बढ़ जाता है और इससे फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है।

स्पाइनल स्ट्रेस फ्रैक्चर पैरेसिस (गंभीर रूप से कमज़ोरी और निचले अंग की खराबी) का कारण बन सकता है। इसके साथ ही घुटने के जोड़ की स्थिरता बिगड़ सकती है और लिगामेंट या मेनस्कल खराब हो सकते हैं।”

रनिंग के लिए तकनीक बहुत महत्वपूर्ण है

मैराथन में भाग लेने वाली अनुपम गुप्ता को कई तरह की स्ट्रेस इंजरी से गुज़रना पड़ा। उनका कहना है कि तेज़ चलने से लेकर दौड़ने या फिर तीव्रता बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय लेना चाहिए। उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में रहने वाली गुप्ता कहती हैं, “अगर कोई शुरुआत कर रहा है या ब्रेक के बाद शुरू कर रहा है, तो व्यक्ति को बहुत जल्द अधिक तीव्रता वाली एक्सरसाइज़ नहीं करनी चाहिए। व्यक्ति को तेज़ चलने से शुरुआत करनी चाहिए, जो हार्ट रेट को सामान्य से कुछ हद तक बढ़ाता है और फिर इसे तीन से चार सप्ताह तक जारी रखना चाहिए। इसके बाद, तेज़ चलने के साथ थोड़ा जॉगिंग किया जा सकता है, जिसमें शूरुआत में तेज़ चलने और दौड़ने का रेशियो क्रमशः 80 और 20 का होना चाहिए। इसे व्यक्ति की प्रगति के साथ आगे बदला जा सकता है। इसके लिए तकनीक भी बहुत महत्वपूर्ण है। चलने से स्ट्रेस का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर आपकी चाल और कदमों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।”

गुप्ता कहती हैं, “चलने के लिए, हर कोई ‘हील टू टो’ शैली का पालन करते हैं, जिसमें व्यक्ति पहले अपनी एड़ी नीचे रखता है और फिर पैर की उंगली रखता है, लेकिन दौड़ने के लिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप पहले मिडफुट रखें और इसके साथ ही कदमों की लंबाई भी महत्वपूर्ण होती है। छोटे कदम उठाएं, जिसमें पैर सीने की सीध से अलग नहीं होने चाहिए। ऐसा करने से पिंडली की हड्डियों और घुटनों पर कम दबाव पड़ेगा, जिससे चोटों से बचने में मदद मिलेगी।”

मार्केट में ‘शॉक एब्जॉर्बर’ वाले कई स्पेशल जूते हैं, जो स्ट्रेस फ्रैक्टर को रोकने में सहायक होने का दावा करते हैं। ये महंगे जूते कुछ लोगों के लिए काम कर सकते हैं, लेकिन दौड़ने की तकनीक से सभी को लाभ मिलता है।

गुप्ता कहती हैं, “इस तरह के जूतों में भारी गद्दे होती है, जिसके कारण पैरों को ज़मीन से उचित रिसपॉन्स नहीं मिलती है और इस तरह यह उचित रूप सीखने में मदद नहीं करते हैं। व्यक्ति को पता होना चाहिए कि चलने और जॉगिंग के दौरान वे ज़मीन पर कैसे पैर रख रहे हैं, ताकि तरीका गलत होने पर उसे सही किया जा सके। पहली बार

शुरुआत करने वाले लोगों को उचित आरामदायक जूते के साथ शुरुआत करनी चाहिए और लगातार अपने पैर रखने के तरीके पर ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ ही आराम सभी के लिए आवश्यक है, क्योंकि चलने या दौड़ने के दौरान जो मांसपेशियां टूटने लगती हैं, उन्हें भी ठीक होने के लिए समय चाहिए।”

स्ट्रेस फ्रैक्चर की रोकथाम

● इसे ट्रेनिंग से टाला जा सकता है, जिसमें लचीलापन, शक्ति, रिदम में अधिक संतुलन बढ़ाने वाले एक्सरसाइज़ किए जा सकते हैं। उचित वार्मअप और कूलडाउन रूटीन से भी मदद मिलेगी।

● विटामिन D, विटामिन B 12, कैल्शियम और आयरन से भरपूर फूड्स का सेवन ज़रूर करें।

● समतल सतह पर टहलें या दौड़ें।

● पर्याप्त आराम करें और शेड्यूल के अनुसार एक्सरसाइज़ करें।

स्ट्रेस फ्रैक्चर का इलाज

● प्रभावित अंगों को आराम दें।

● दर्द से राहत पाने के लिए 48 घंटे तक दिन में कम से कम चार बार सात से दस मिनट तक बर्फ लगाएं।

● अंग को स्थिर करने के लिए पट्टी बांधें।

● सूजन को कम करने के लिए प्रभावित अंग को ऊपर उठाकर रखें।

● लक्षण बने रहने पर डॉक्टर से सलाह लें।

इस आर्टिकल का सारांश

● धावकों और तेज़ गति से चलने वाले लोगों को दिनचर्या या तीव्रता में अचानक बदलाव करने से स्ट्रेस फ्रैक्चर हो सकता है। यह आमतौर पर वज़न सहन करने वाली हड्डियों जैसे पेल्विक, फीमर, टिबिया, फाइबुला और मेटाटार्सल में होता है।

● ट्रेनिंग शेड्यूल, जैसे फ्लेक्सिबिलीटी, स्ट्रेंथ और को-ऑर्डिनेशन बढ़ाने वाली एक्सरसाइज़ करने से बेहतर परिणाम मिल सकता है। वार्मअप और कूलडाउन रूटीन से स्ट्रेस फ्रैक्चर को रोकने में मदद मिल सकती है।

● कैल्शियम, आयरन, विटामिन B 12, विटामिन D और विटामिन B 12 से भरपूर फूड्स हड्डियों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और स्ट्रेस फ्रैक्चर के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं।

● व्यक्ति के ज़मीन पर पैर रखने के तरीके के साथ सही तकनीक और छोटे कदम उठाने से स्ट्रेस फ्रैक्चर के जोखिम को कम किया जा सकता है।

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