बेंगलुरु की 41 वर्षीय रम्या बीबी को पिछले कुछ वर्षों से जोड़ों के दर्द की समस्या थी, तो उन्होंने डॉक्टर को दिखाया। रम्या पहले से मोटापा, गैस्ट्राइटिस और माइग्रेन की समस्या से ग्रस्त थीं। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि मेनोपॉज जोड़ों के दर्द के कारणों में से एक हो सकता है। उनको दर्द कम करने के लिए दवाएं दी गईं, लेकिन इससे बहुत समय तक समाधान नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने एक नेचुरोपैथ डॉक्टर से संपर्क किया, जिन्होंने उनकी मेडिकल हिस्ट्री की जानकारी लेने के साथ-साथ उनकी जीवन शैली को समझा और दो सप्ताह के लिए मस्टर्ड पैक, कोल्ड कंप्रेशर्स और ‘रिवलसिव थेरेपी’ कराने की सलाह दी।
उन्हें डाइट प्लान भी दिया गया और नियमित एक्सरसाइज़ करने की हिदायत दी गई। इलाज कराने और सलाह के अनुसार जीवनशैली में बदलाव करने के बाद, जोड़ों के दर्द, गैस की परेशानी और माइग्रेन अटैक नियंत्रित हो गया। इतना ही नहीं, उन्होंने अपना वज़न भी कम किया। नेचुरोपैथ मैनेजमेंट में हाइड्रोथेरेपी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाइड्रोथेरेपी या वॉटर थेरेपी में विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए विभिन्न रूपों (गर्म और ठंडे) में पानी का मेडिकल उपयोग किया जाता है।
हाइड्रोथेरेपी में ट्रीटमेंट प्लान व्यक्ति की लंबाई, वज़न और शारीरिक शक्ति पर निर्भर करता है। चूंकि अधिकांश इलाज में त्वचा पर गर्म या ठंडे पानी का प्रयोग किया जाता है, इसलिए डॉक्टर त्वचा के रिएक्शन की जांच करते हैं और व्यक्ति के लिए उपयुक्त कंप्रेशन, पैक या स्नान का सुझाव देते हैं।
कर्नाटक के उजिरे स्थित श्री धर्मस्थल मंजूनाथेश्वर कॉलेज ऑफ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंसेज़ के नेचुरोपैथ थेराप्यूटिक डिविज़न की डीन डॉ. सुजाता के जे कहती हैं, “जब गर्म और ठंडे पानी को त्वचा के एक छोटे से हिस्से पर रखा जाता है, तो त्वचा रिएक्शन के रूप में लाल और पीलेपन में अपना रंग बदलने लगती है। अगर उपचार के लिए त्वचा से होने वाली रिएक्शन अधिक समय तक रहती है, तो स्टीम बाथ या बहुत गर्म कंप्रेशन से बचना बेहतर है। डेड सेल्स को हटाने और हाइड्रोथेरेपी से पहले त्वचा की रिएक्शन में सुधार करने के लिए इप्सॉम साल्ट (मैग्नीशियम सल्फेट) को त्वचा पर रगड़ा जा सकता है।”
कंप्रेशन थेरेपी
डॉ. सुजाता कहती हैं “अर्थराइटिस के लिए नेचुपैथी ट्रीटमेंट में हाइड्रोथेरेपी, इन्फ्रारेड थेरेपी, मसाज थेरेपी और फास्टिंग थेरेपी शामिल हैं। हाइड्रोथेरेपी में मस्टर्ड पैक और हॉट, वॉर्म या कोल्ड कम्प्रेशर शामिल हैं।
मस्टर्ड पैक में सरसों के पाउडर, चावल के आटे और गर्म पानी का पेस्ट होता है, जिसे त्वचा पर लगाया जाता है। एक रिसर्च के अनुसार, “यह एक उपचार के रूप में काम करता है और जोड़ों के पास ब्लड फ्लो को बढ़ाता है, जो मस्तिष्क के काम करने की क्षमता को बेहतर बनाता है और जोड़ों के दर्द को कम करता है।”
डॉ. सुजाता कहती हैं, “इस पैक को 12 से 15 मिनट के बाद हटा देना चाहिए, नहीं तो इससे जलन हो सकती है। कुछ व्यक्तियों को थोड़े समय में जलन महसूस हो सकती है। ऐसे में पैक को तुरंत हटा देना चाहिए। बीमारी के इलाज के लिए तीन से सात दिनों तक इसे किया जा सकता है। शुरुआत में डॉक्टर से थेरेपी लेने के बाद, व्यक्ति घर पर भी कंप्रेशन थेरेपी कर सकता है, क्योंकि इसे घर पर आसानी से किया जा सकता है।”
डॉ. सुजाता कहती हैं, “इसमें गर्म या ठंडे कंप्रेशन के आधार पर, कपड़े को क्रमशः गर्म या ठंडे पानी में भिगोया जाता है और जोड़ों पर बांधा जाता है। आमतौर पर चार मिनट के लिए हॉट कंप्रेशन दिया जाता है और उसके बाद एक मिनट तक कोल्ड कंप्रेशन दिया जाता है। पुरानी बीमारियों में, आठ मिनट के लिए हॉट कंप्रेशन के बाद दो मिनट के लिए कोल्ड कंप्रेशन लेने की सलाह दी जाती है। यह ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करता है और दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है।”
कंट्रास्ट बाथ थेरेपी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश में आरोग्यम नेचुरोपैथी सेंटर की नेचुरोपैथ डॉ. नेहा पटेल के अनुसार, “बारी-बारी से छह से सात सेशन में लगभग 15 से 20 मिनट के लिए हॉट और कोल्ड बाथ लेनी चाहिए। जिन वृद्ध लोगों की जॉइंट्स की सर्जरी हुई है, उनको इस कंट्रास्ट बाथ थेरेपी से लाभ होता है। ऑपरेशन के 15 दिन बाद इसे नेचुरोपैथ की देखरेख में किया जा सकता है।”
स्टीम बाथ
स्टीम बाथ के दौरान व्यक्ति को एक चैंबर के अंदर लिटा दिया जाता है। व्यक्ति का सिर बाहर रहता है और कोल्ड वॉटर में स्नान के बाद लगभग आठ से दस मिनट तक स्टीम दी जाती है। डॉ. सुजाता कहती हैं, एलर्जिक राइनाइटिस (एलर्जी के कारण नाक बहना) की स्थिति में स्टीम इनहेलेशन से राहत मिलती है। इस समस्या में सुगंधित तेलों का उपयोग करने से बचना सबसे अच्छा होता है, क्योंकि इससे आंखों में जलन पैदा हो सकती है।
पैक्स
नैचुरोपैथिक फिज़िशियन के अनुसार, एलर्जिक राइनाइटिस वाले व्यक्तियों को ठंडे पानी पीने, ठंडे पानी में स्नान करने और ठंडी हवा लेने जैसी कोल्ड थेरेपी का सुझाव दिया जाता है। अस्थमा के मैनेजमेंट के लिए सीने पर ठंडे पानी के छीटें मारे जाते हैं, जबकि पीठ पर गर्म पैक रखे जाते हैं। ब्रोंकाइटिस (वायुमार्ग की सूजन) वाले व्यक्तियों के शरीर को एक सूखी चादर में लपेटा जाता है और पसीना आने दिया जाता है।
डॉ. सुजाता कहती हैं, “पोषक तत्वों से भरपूर डायट का सेवन करने के बाद भी एनीमिया से पीड़ित लोगों में पोषक तत्वों के अब्सॉर्प्शन की क्षमता कम होती है। ऐसे व्यक्तियों के लिए, गैस्ट्रो हेपेटिक पैक (शरीर पर गर्म सिंकाई और पीठ के निचले हिस्से पर कोल्ड बैग) अब्सॉर्प्शन में सुधार करने में मदद करते हैं।”
एक्सपर्ट्स के अनुसार, 10 से 15 दिनों के लिए निम्नलिखित तीनों फेज़ को अपनाना चाहिए:
एलिमिनेशन फेज- इस फेज में इमर्शन थेरेपी शरीर से बेकार पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है। इस थेरेपी में दो सेशन होते हैं, जिसमें सुबह के सेशन में आमतौर पर खाली पेट गर्म पानी का इस्तेमाल किया जाता है। दूसरा सेशन तीन से चार घंटे के बाद होता है और शरीर को आराम करने में मदद करने के लिए गर्म या ठंडे पानी का उपयोग किया जाता है।
गर्म पानी का उपयोग घर के बाथटब में भी किया जा सकता है। इससे स्ट्रेसपूर्ण कंडीशन को ठीक करने और मैनेज करने में मदद मिलती है। शांति महसूस करने के लिए बाथटब में लैवेंडर के तेल की कुछ बूंदें डालें, तो और बेहतर होता है।
सूथिंग फेज- अंडरवॉटर मसाज, ब्लड फ्लो को बढ़ाने और हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज़, हाइपरलिपिडेमिया और अर्थराइटिस जैसी पुरानी समस्याओं पर नियंत्रण पाने में मदद करती है। इसमें व्यक्ति को टब के अंदर रहना पड़ता है, जिसमें अलग-अलग दिशाओं से बहने वाली पानी की धारा सुखदायक अनुभव देती है। आमतौर पर इस फेज़ में बहुत गर्म पानी से बचा जाता है, क्योंकि इससे थकावट महसूस होने लगती है। इसलिए केवल गुनगुना और ठंडे पानी का उपयोग किया जाता है।
कंस्ट्रक्टिव फेज – आमतौर पर हाइड्रोथेरेपी के अलावा, इस फेज में सहायता के रूप में क्रोमोथेरेपी (जिसमें रंगों का उपयोग शामिल है), मालिश और धूप सेंकने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
डायट
सभी फेज़ के दौरान, व्यक्ति को उबली हुई सब्ज़ियों और फलों के रस का सेवन करना चाहिए और बहुत अधिक मसालेदार भोजन से बचना चाहिए। डॉ. पटेल के अनुसार, “थेरेपी शुरू करने से पहले, व्यक्ति को आराम करने और शरीर को हाइड्रेट करने (पानी पीकर) के लिए कहा जाता है। हाइड्रोथेरेपी के बाद शरीर की जकड़न को कम करने के लिए एक्सरसाइज़ करना आवश्यक है। जो व्यक्ति त्वचा संबंधी एलर्जी या संक्रामक बीमारियों से ग्रस्त हैं, उन्हें हाइड्रोथेरेपी नहीं करानी चाहिए।”