मस्तिष्क में मौजदू अमाइलॉइड-बीटा क्लस्टर (amyloid-beta clusters) को साफ करने में केसर के अर्क की भूमिका पाई गई है। इससे उम्मीद जागी है कि यह अल्जाइमर्ज डिजिज (Alzheimer’s disease) के लक्षण बढ़ने की गति को धीमा कर सकता है।
अल्जाइमर्ज डिजिज (Alzheimer’s disease) डिमेंशिया (dementia) या मेमोरी लॉस (memory loss) या याददाश्त खोने का सबसे सामान्य रूप है। यह आमतौर पर 65 साल से अधिक उम्र के लोगों को प्रभावित करता है। हालांकि कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, मगर बढ़ती उम्र अल्जाइमर्ज के जोखिम का सबसे महत्वपूर्ण कारण है।
अल्जाइमर्ज से पीड़ित व्यक्ति की याददाश्त हमेशा के लिए चली जाती है एवं उन्हें रोज़मर्रा के काम करने में कठिनाई और कुछ नया न सीख पाने जैसी समस्याएं होती हैं। इतना ही नहीं, इस बीमारी का असर व्यक्ति के व्यवहार पर भी पड़ता है जिससे वे आवेगी, भ्रांत और अप्रत्याशित आचरण कर सकते हैं, जिसकी तीव्रता समय के साथ बढ़ती जाती है।
व्यक्ति के मस्तिष्क में मौजदू न्यूरॉन्स (neurons) क्षतिग्रस्त होने लगते हैं, और इससे उनकी स्थिति बिगड़ती चली जाती है। अमाइलॉइड-बीटा (amyloid-beta) और ताऊ (tau) नामक प्रोटीन का मस्तिष्क के टिशू (tissue) में जमा होने लगते हैं जिसके कारण नर्व क्षतिग्रस्त होते हैं। इससे नर्व कोशिकाओं (nerve cells) के बीच की संचार प्रणाली पर असर पड़ता है। इसके अलावा, रिसर्च में अल्जाइमर्ज होने के कई अन्य कारण भी सामने आए हैं।
फिलहाल अल्जाइमर्ज का कोई इलाज नहीं है। इसलिए इस रोग को बढ़ने से रोकने का सबसे अच्छा उपाय है कि इसका जल्द से जल्द निदान हो। न्यरोट्रांसमीटर क्रिया (neurotransmitter activities) के बाधित होने के कारण होने वाले लक्षणों को कम करने में कुछ दवाइयां मदद करती हैं। (न्यरोट्रांसमीटर मस्तिष्क में मौजूद रासायनिक पदार्थ है जो नर्व कोशिकाओं के बीच संचार (nerve cell communication) में मदद करते हैं।) हाल ही में इस विषय पर एक सफलता हाथ लगी है। जापानी फर्म एसाई (Eisai) और अमेरिकी बायोटेक फर्म बायोजेन (Biogen) द्वारा तैयार की गई दवा लेकानेमैब (lecanemab) को क्लीनिकल ट्रायल में अल्जाइमर्ज के बढ़ने की गति को धीमा करने में उपयोगी पाया गया है।
प्लांट बेस्ड यानि पौधों के यौगिकों पर आधारित दवाइयां
हालाँकि, दवाइयों के साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं। पिछले कुछ दशकों से शोधकर्ता अल्जाइमर्ज के इलाज के लिए पौधे व जड़ी-बूटियों के अर्क में बायोऐक्टिव कम्पाउंड्ज (bioactive compounds / जैव सक्रिय यौगिकों) की तलाश कर रहे हैं। कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि केसर, हल्दी और आंवले में मौजूद ऐक्टिव कम्पाउंड्ज में अमाइलॉइड-बीटा क्लस्टर (amyloid-beta clusters) को कम करने की क्षमता होती है। इसके अलावा, केसर एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेटरी (सूजन को कम करने वाले) एजेंट के रूप में भी जाना जाता है।
2016 में जर्नल ऑफ अल्जाइमर्ज डिजिज (Journal of Alzheimer’s Disease) में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अल्जाइमर्ज से पीड़ित 17 लोगों के एक छोटे समूह को 12 महीनों तक केसर के कैप्सूल दिए और पाया कि उन लोगों की संज्ञानात्मक क्षमताओं में सुधार हुआ है। हालाँकि उनमें कुछ हल्के-फुल्के दुष्प्रभाव भी देखे गए।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (Indian Institute of Integrative Medicine), जम्मू (आईआईआईएम-जम्मू) के शोधकर्ताओं ने केसर कम्पाउंड्ज के गुणों का अध्ययन किया जिसे एसीएस ओमेगा (ACS Omega) में प्रकाशित किया गया। इस रिसर्च स्टडी में पाया गया कि केसर के फूल में क्रोसिन (crocin) नामक एक केमिकल (रासायनिक) कम्पाउंड होता है, जिसमें 16 सक्रिय एंटी-अल्जाइमर्ज केमिकल होते हैं।
केसर के अर्क और इसमें मौजूद ‘क्रोसिन‘ (‘Crocin’) का एमिलॉयड-बीटा प्लाक (amyloid-beta plaques) पर क्या असर होता है, इसका पता लगाने के लिए टीम ने प्रयोगशाला में और चूहों पर प्रयोग भी किए।
आईआईआईएम–जम्मू के सीनियर प्रिन्सिपल साइंटिस्ट डॉ. संदीप बी भारते ने हैप्पीएस्ट हेल्थ को बताया, “क्रोसिंस (crocins) केसर के प्रमुख घटक हैं जो प्रोड्रग्स (prodrugs) के रूप में काम करते हैं। जब केसर या इसके अर्क का मुँह से सेवन किया जाता है, तो केसर में मौजूद क्रोसिंस (crocins) गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में पहुँचकर क्रोसेटिन (crocetin) में परिवर्तित हो जाता है। यह झिल्लियों के माध्यम से रक्त परिसंचरण (blood circulation) तक और वहाँ से मस्तिष्क तक पहुँचता है, जहाँ यह अल्जाइमर्ज-रोधी गतिविधि दिखाता है। दरअसल, यह ब्लड–ब्रेन बैरियर (blood-brain barrier) को पार कर व्यक्ति के मस्तिष्क तक जाता है। बता दें कि ब्लड–ब्रेन बैरियर मस्तिष्क की एक अर्ध-पारगम्य सुरक्षात्मक परत है। आसान शब्दों में कहें तो अर्ध-पारगम्य एक छोटी झिल्ली होती है जिसे केवल छोटे अणु ही पार हो सकते हैं।
वे बताते हैं कि क्रोसेटिन (crocetin) मस्तिष्क में एमाइलॉयड क्लस्टर (amyloid cluster) को दो तरह से साफ करता है। “सबसे पहले, क्रोसेटिन मस्तिष्क में ऑटोफैगी (autophagy) (कोशिका के विषाक्त पदार्थों को अपने आप निकालने की तकनीक) की शुरुआत करता है। फिर यह ब्लड-ब्रेन बैरियर में मौजूद पीजीपी (PgP) नामक एक ट्रांसपोर्टर प्रोटीन की गतिविधि को बढ़ाता है। पीजीपी मस्तिष्क से एमाइलॉयड-बीटा को साफ करने के लिए इसे रक्त प्रवाह में फ्लश करता है।” पहले के अध्ययनों में हमने पाया है कि केसर के अर्क से जानवरों में याददाश्त और सीखने की क्षमता में सुधार होता है। वे कहते हैं कि प्रयोगों के दौरान केसर के अर्क और इसके कम्पाउंड का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं देखा गया है।
एक अन्य अध्ययन में प्रयोगों के दौरान पाया गया कि क्रोसेटिन (crocetin) ब्लड–ब्रेन बैरियर (blood-brain barrier) को पार कर सकता है।
जानिए आयर्वेुद क्या कहता है
भारत में पारंपरिक रूप से केसर का दवा, मसाले और प्रसाधन सामग्री के रूप में उपयोग किया जाता है।
आगरा के आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. अमित शर्मा कहते हैं कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में मानसिक क्षमताओं के तीन पहलुओं का उल्लेख किया गया है: धी (सीखना), धूति (याद रखना) और स्मृति (याद करना)। इन तीनों मानसिक प्रक्रियाओं में गड़बड़ी से डिमेंशिया हो सकता है।
डॉ. शर्मा कहते हैं, ”अल्जाइमर्ज के शुरूआती लक्षणों के लिए हम केसर, हल्दी और आंवले के मिश्रण के सेवन की सलाह देते हैं। इसके अलावा, दूसरे लक्षणों के आधार पर अश्वगंधा, शंखपुष्पी और गोटू कोला जैसी जड़ी बूटियां का मिश्रण भी दिया जाता है।”
अध्ययन के परिणाम आशाजनक हैं
आयुर्वेद का कहना है कि केसर मिज़ाज की उन्नति करता है। अध्ययनों से पता चलता है कि केसर सेरोटोनिन (serotonin), डोपामिन (dopamine) और नॉरएपीनेफ्रीन (norepinephrine) जैसे न्यूरोट्रांसमीटरों की मात्राओं को बढ़ाता है जिससे अवसाद (डिप्रेशन), चिंता और डिमेंशिया को कम करने में मदद मिलती है।
डॉ भारते कहते हैं, “हमें यह भी पता लगा है कि केसर का अर्क एमिलॉयड-बीटा (amyloid-beta) और सूजन के दुष्प्रभावों से न्यूरॉन्स (neurons) की रक्षा करता है। अर्थात, संभावना है कि केसर का सेवन अल्जाइमर्ज डिजिज (Alzheimer’s disease) के प्रसार को धीमा करने में प्रभावी हो सकता है।” वे आगे बताते हैं कि कई देशों में शोधकर्ताओं ने इस अर्क का कैप्सूल बनाने के लिए पेटेंट प्राप्त करने का आवेदन किया है।